Page 380 Class 12th History Chapter 2 राज , किसान और नगर ncert book solution

पाठ - 2

राज , किसान और नगर

 

Q1. ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के साक्ष्यों की चर्चा। हडप्पा के नगरों के प्रमाण से कितने अलग हैं ये प्रमाण ?

उत्तर: हालाँकि इनमें से अधिकांश स्थानों पर व्यापक रूप से खुदाई करना संभव नहीं है , क्योंकि आज भी इन क्षेत्रों में लोग रहते हैं। हडप्पा शहरों में डिजाईन अधूरा रूप से आसान था। कमियों के बावजूद , इस काल से विभिन्न प्रकार की खोज बरामद की गई है जो इस काल के शिल्प कौशल पर प्रकाश डालती हैं। इनमें से उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के बर्तन और थालियां मिली हैं जिन पर चमकीली काली चढ़ी हुई है। उत्तरी कृष्ण मारजित पात्रा कहा जाता है। संभावना है कि इनका उपयोग अमीर लोग करेंगे। साथ ही सोने की चाँदी , पीतल , ताँबे , हाथी के दाँत , नमूने जैसे- तरह-तरह के नशे के बने स्थान , उपकरण , हथियार , पोयचर , सीप और पक्की मिट्टी मिली हैं। यह अनुमान लगाया जाता है कि शिल्पकारों ने लोहे के उपकरणों की एक श्रृंखला के लिए हल्दी के टुकड़ों को पूरा करने के लिए उपयोग किया था, लेकिन हडप्पा शहर में लोहे के उपकरणों का कोई उपयोग नहीं किया गया था।

 

Q2. महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षणों का वर्णन।

उत्तर: महाजनपद की प्रमुख विशेषताएँ

1. जापानीज का विकास 600 ई0पू0 से 320 ई0पू0 के बीच हुआ।

2. महाजनपद की संख्या 16 थी। इनमें से लगभग 12 राजतंत्रीय राज्य और 4 गणतंत्रीय राज्य थे।

3. सिलिकॉन आयरन के बढ़ते प्रयोग और प्लास्टिक के विकास के साथ जुड़ते हैं।

4. अधिकांश साम्राज्यपदों पर राजा का शासन था , लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था , इस तरह का प्रत्येक व्यक्ति राजा था। महावीर और बुद्ध दोनों गण से आये थे।

5. गणतंत्र में भूमि सहित अन्य आर्थिक संसाधनों पर गणतंत्र का सामूहिक नियंत्रण हुआ था।

6. प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी थी जो कि लियोनार्डो किला थी। किलेबंद राजधानियों की कोचिंग , प्रारंभिक सैनिकों और मुसलमानों के लिए आर्थिक स्रोत की बर्बादी हुई थी।

7. ब्रह्माण्डों में ब्राह्मणों ने लगभग छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व से संस्कृत भाषा में धर्मशास्त्र नामक ग्रंथों की रचनाएँ प्रारम्भ कीं। अन्य लोगों के लिए संस्थान का उद्घाटन किया गया।

8. शासकों के काम करने वाले किसानों , कारीगरों और कारीगरों से कर तथा भेट वसूलना माना जाता था। संपत्ति संपत्ति का एक वैध उपाय पड़ोसी राज्य पर आक्रमण करके धन एकत्र करना भी माना जाता था।

9. धीरे-धीरे कुछ राज्यों ने अपनी स्थायी सेनाएँ और सामाग्री तंत्र तैयार करने के लिए तैयारी शुरू कर दी। शेष राज्य में अब भी सहायक सेना पर असंबद्ध रोस्टर वर्ग को नियुक्त किया गया था।

 

Q3. आम लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण कैसे करें ?

उत्तर: इतिहासकारों ने आम लोगों के जीवन के पुनर्निर्माण के लिए कई तरह के संसाधनों का उपयोग किया है। जिनमे से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं
1.सामयिक कृतियाँ जैसे मेगस्थनीज के लेख
, इकोनॉमिका (जिसके कुछ भाग की रचनाएँ चाणक्य द्वारा लिखी गई) पौराणिक और जैन साहित्य और संस्कृत थी शास्त्र रचनाएँ।
2.पत्थरों और स्तम्भों पर मिले अशोक के अभिलेख।
3.कई नगरों में छोटे-छोटे दानव अभिलेख प्राप्त होते हैं। इन दाता के नाम के साथ-साथ उसके व्यवसाय का भी उल्लेख है। इन नगरों में रहने वाले धोबी
, बुनकर , मूर्तिकार , बढ़ई , कुम्हार , स्वर्णकार , लोहार , अधिकारी , धार्मिक गुरु , व्यापारी और मोरक्को के बारे में विवरण लिखे जाते हैं।

 

Q4. पांड्य सरदार (स्रोत 3) को दी जाने वाली कब्र की तुलना दंगुन गांव (स्रोत 8) की कब्र से की गई। आपको क्या सुविधाएँ और असुविधाएँ दिखाई देती हैं

उत्तर: पांड्य सरदार को दी गई नीग्रो की सूची में हाथी दांत , लकड़ी की लकड़ी , हिरण के बाल से बने अफ्रीका , शहद , चंदन , लाल गेरू , सुरमा , हल्दी , इलायची , काली मिर्च , आदि जैसी चीजें शामिल थीं। वे नारियल , आम , औषधीय उपचार , फल , प्याज , रेवेन्यू , फूल , एस्का नट , केले , बेबी टाइगर , शेर , हाथी , बंदर , भालू , हिरण , कस्तूरी मृग , फॉक्स , मोर , कस्तूरी बिल्ली , जंगली मुर्ग , बंदर वाले तोते , आदि भी थे। डेंगुन गांव में पैदा होने वाली सब्जियां घास , नीम की खाल , लकड़ी का कोयला , किण्वित शराब , नमक , दूध और फूल , खनिज पदार्थ , आदि थे। दोनों में एक ही समान फूल हैं।

 

Q5. अभिलेखशास्त्रियों की कुछ प्रश्नों की सूची बनाई गई।

उत्तर: अभिलेखशास्त्री वह व्यक्ति होता है जो अभिलेखों का अध्ययन करता है। अभिलेखशास्त्रियों के सामने आने वाली तस्वीरें हैं:
1.कभी-कभी पत्र को हल्के से अधूरा छोड़ दिया जाता है, जिसमें पढ़ना भी मुश्किल होता है। 2.कभी-कभी पुरालेख नष्ट भी हो सकते हैं।
3. अभिलेखों के शब्दों के वास्तविक अर्थ के बारे में पूर्ण रूप से ज्ञान हो पाना सदैव सरल नहीं होता क्योंकि कुछ अर्थ किसी विशेष स्थान या समय से संबंधित होते हैं।
4.शिलालेखों की सामग्री लगभग उस व्यक्ति या संवाद के सिद्धांतों को दर्शाती है जो उन्हें कमीशन देते थे।

 

निम्नलिखित .पर एक लघु निबंध लिखें

Q6. मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की चर्चा। अशोक के अभिलेखों में कौन-कौन से दस्तावेज के प्रमाण मिले हैं ?

उत्तर: चन्द्र-गुप्त मौर्य मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे। उनका शासन पश्चिमोत्तर अफ़ग़ानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला हुआ था। मौर्य प्रशासन की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
1. मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी और मौर्य साम्राज्य के चार प्रांतीय केंद्र तक्षशिला
, उज्जयिनी , तोशाली और सुवर्णगिरि थे।
2.राजधानी और प्रांतीय आदिवासियों के आसपास के इलाकों में शराबबंदी सबसे मजबूत थी। 3.मेगस्थनीज ने सैन्य गठबंधन के लिए छह उप-समितियों वाली समितियों का उल्लेख किया है।
उप समितियाँ एवं उनके संस्थान इस प्रकार की पहली समिति नौसेना की देखभाल करती थी। दूसरी समिति परिवहन और ऑटोमोबाइल प्रबंधन का काम करती थी। तीसरी समिति पैदल सेना के लिए जिम्मेदार थी। चौथी समिति रथों के लिए जिम्मेदार थी-पांचवीं समिति रथों के लिए जिम्मेदार थी। छठी समिति के हाथियों की जिम्मेदारी थी।
4.चंद्र-गुप्त मौर्य के पौत्र अशोक ने धम्म का प्रचार करके अपने साम्राज्य को एक साथ बनाए रखने की कोशिश की। धम्म सिद्धांत या लोगों के लिए नैतिक आचार संहिता का समूह था। उनके अनुसार
, यह इस दुनिया में और इसके बाद के दुनिया में लोगों की रुचि को दर्शाता है। धम्म के संदेश के प्रचार के लिए जिन विशेष अधिकारियों को नियुक्त किया गया था उन्हें धम्म महामत्ता के रूप में जाना जाता था।
5. एक मजबूत सड़क नेटवर्क जो लोगों और गरीबों की मुक्ति को सुविधाजनक बनाता था। अशोक ने अपने पेजों और अधिकारियों के लिए पत्थरों के टुकड़े, प्राकृतिक चट्टानों और साथ में ही स्तम्भों पर बने
शिलालेखों का उपयोग करते हुए कहा कि वे धम्म को क्या संप्रदाय देते हैं, ब्राह्मणों के प्रति सम्मान , ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा और धार्मिक जीवन का त्याग करने वाले , दासों और नौकरों के साथ-साथ अन्य धर्मों और उद्योगों के प्रति सम्मान।

 

Q7. यह बीसवीं शताब्दी का एक सुविख्यात पुरालेखशास्त्री , डी.सी. सरकार का बयान है: भारतीयों के जीवन , संस्कृति और संस्कृति का ऐसा कोई पक्ष नहीं है।

उत्तर: सुप्रसिद्ध अभिलेखशास्त्री डी0सी0 सरकार ने मत किया कि अभिलेखों से भारतीयों के जीवन , संस्कृति और सभी वर्गों से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है। अभिलेखों से मिलने वाली जानकारी का अंतिम विवरण निम्नलिखित प्रकार से है:

1. शासकों के नाम-अभिलेखों से हमें राजाओं के नाम का पता चलता है। साथ ही हम उनकी डिग्री के बारे में भी जानते हैं। उदाहरण के तौर पर अशोक के नाम अभिलेखों में उनकी दो डिग्रियों (देवनामप्रिय और पियादास) का भी उल्लेख है। सीगुप्त , खारवेल , रुद्रदामा आदि के नाम भी अभिलेखों में आये हैं।

2. राज्य-विस्तार-उत्कीर्ण अभिलेखों की उत्पत्ति कहाँ पर हुई थी जहाँ पर उस राजा का राज्य विस्तार हुआ था। उदाहरण के लिए मौर्य साम्राज्य का विस्तार देखने के लिए हमारे पास सबसे प्रमुख स्रोत अशोक के अभिलेख हैं।

3. राजा का चरित्र- ये शासक शासकों के चरित्र का चित्रण करने में भी सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए अशोक जनता के बारे में क्या सोचा था। अनेक विषयों पर वह स्वयं के विचार

व्यक्तव्य हैं। इसी प्रकार के समुद्रगुप्त के चरित्र चित्रण के लिए प्रयाग पुरालेख उपयोगी है। हालाँकि इनमें राजा के चरित्र को बढ़ाया-चढ़ाकर लिखा गया है।

4. काल-निर्धारण-अभिलेख की लिपी की शैली और भाषा के आधार पर शासकों के काल का भी पता चलता है।

5. भाषा व धर्म के बारे में जानकारी: अभिलेखों की भाषा से हमें उस काल की भाषा के विकास का पता चलता है। इसी प्रकार के अभिलेखों पर धर्म संबंधी जानकारी भी प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए , अशोक के धम्म की जानकारी के स्रोत उनके अभिलेख हैं। भूमि अनुदान से भी धर्म व संस्कृति के बारे में जानकारी मिलती है।

6. कला-अभिलेख कला के भी आदर्श हैं। विशेषौर पर मौर्यकाल के अभिलेखों में विशाल पाषाण खंडों को चमकाया गया तथा उन पर ईसाइयों की मूर्तियाँ रखी गयीं। ये हैं प्राचीन काल की कला के उत्कृष्ट स्वामी।

7. सोशल ग्रेजुएट्स की जानकारी अभिलेखों से ‍हमें ‍कॉमर्स कॉमर्स के बारे में और भी जानकारी मिलती है। हमें पता चलता है कि शासक एवं राज्य शाही के अलावा नगरों में व्यापार एवं शिल्पकार (बुनकर , सुनार , धोबी , लोहकार , बढ़ई) आदि भी रहते थे।

8. भू-राजस्व व्यवस्थापन-अभिलेखों से हमें भू-राजस्व व्यवस्था तथा प्रशासन के विभिन्न पहलुओं की जानकारी भी प्राप्त होती है। भूदान राजनेताओं से संबंधित विवरण हमें राजस्व की जानकारी प्रदान करते हैं। साथ ही जब भूमि अनुदान राज्य को दिया जाने लगा तो धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे बढ़ती हो गईं। इस प्रकार भूमि अनुदान पत्र राजा की ऊंचाई शक्ति को छुपाने के प्रयास की जानकारी भी देते हैं।

उपरोक्त सभी बातों के साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इन अभिलेखों का अध्ययन करना चाहिए। अभिलेखों की सीमाएँ भी होती हैं। विशेष विवरण पर जन सामान्य से संबंधित जानकारी इन अभिलेखों में कम पाई जाती है। तथापि अभिलेखों से समाज के विविध परिदृश्य से काफी जानकारीपूर्ण है।

 

Q8. उत्तर-मौर्य काल में विकसित राजत्व के विचारों की चर्चा।

उत्तर: उत्तर-मौर्य काल में विकसित राजवंशों की देवी राजा सिद्धांत की थी। प्रिंस ने विभिन्न देशों के साथ मिलकर अपने आप को ऊंचाई पर पहुंचाना शुरू कर दिया। इस तरह की धारणा को निम्न उदाहरण के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है 1. कुषाण: मध्य एशिया से लेकर उत्तर-पश्चिम भारत तक एक विशाल राज्य पर शासन किया गया। इनके इतिहास अभिलेखों और लिखित साख का पुनर्निमाण किया गया है। मथुरा (उत्तर प्रदेश) के पास स्थित एक मंदिर में कुषाण शासकों की विशाल मूर्तियाँ स्थापित हैं। इसी तरह की मूर्तियां अफगानिस्तान के एक धर्म-स्थल में भी पाई जाती हैं। कई कुषाण शासकों ने देव-पुत्र या ' देवता के पुत्र' की उपाधि को भी जोड़ा।
2. गुप्त: गुप्त साम्राज्य सहित कई बड़े साम्राज्यों के प्रतीक हैं। इनमें से कई राजवंशों पर असहमति थी। अपना निर्वाह स्थानीय मशीनरी द्वारा किया गया जिसमें भूमि नियंत्रण भी शामिल था। वे शासकों का आदर करते थे और उनके सैनिक भी सहायता करते थे। जो सम्राट शक्तिशाली हुए थे वे राजा भी बन गए थे और जो राजा दुर्बल हुए थे
, वे बड़े शासकों के अधीन हो गए थे। गुप्त शासकों का इतिहास साहित्य , गुप्त शासकों और अभिलेखों की सहायता से लिखा गया है। साथ ही अपने राजा या स्वामी की प्रशंसा में लिखी गई कहानियाँ भी उपयोगी रही हैं। उदाहरण के तौर पर , इलाहाबाद स्तंभ अभिलेखों के नाम से प्रसिद्ध प्रयाग पुरालेख की रचना हरिषेण जो स्वयं गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के राज-कवि थे , ने संस्कृत में की थी।

 

Q9. वर्णित काल में कृषि केविषय-तारीकों में किस जद तक परिवर्तन हुआ ?

उत्तर: करों की हल्दी मांग के कारण छठी शताब्दी ई.पू. से कृषि कृषि महान परिवर्तन हुए। कई बोल्टों को नामांकित किया गया जिसका उद्देश्य उत्पादन को उपलब्ध कराना था। इन कृषि में से कुछ हैं:
1.कृषि के लिए हल का उद्देश्य: उपज बढ़ाने का एक उपाय हल का वोग था। जो छठी शताब्दी ईपू
, से ही गंगा और कावेरी की घाटियों के उर्वर खारी क्षेत्र में पाई गई थी। जिन क्षेत्रों में भारी वर्षा हुई थी वहां लोहे के फल वाले हलों के माध्यम से उर्वर भूमि की जुताई की जाने लगी। इसके अलावा गंगा की घाटी में धान की कमी के कारण उपजी में भारी वृद्धि हुई। हालाँकि किसानों को इसके लिए कमर- झारखण्ड कारीगरी का सामान चाहिए था।
2. कुलदल का प्रयोग: पंजाब और राजस्थान के अर्धशुष्क मैदान वाले क्षेत्र और उपमहाद्वीप के घाट और मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में किसानों के लिए कुदाल का उपयोग
, जो ऐसे इलाको के लिए कहीं अधिक उपयोगी था।
3.सिंचाई का उपयोग: उपजी वृद्धि का एक और तरीका कुओं
, तालाबों और स्थानों-जगह नहरों के माध्यम से सींचना था।

 

रेखांकन कार्य

Q10. 1 और 2 की तुलना राजा और उन महाजनपदों की सूची से की गई जो कि प्राचीन साम्राज्य में शामिल थे। इस क्षेत्र में अशोक के कोई अभिलेख क्या मिलते हैं ?


उत्तर : उन सभी महाजनपदों में अशोक के शिलालेख मिले हैं जिनको मौर्य साम्राज्य में शामिल किया गया था 1.अश्मका (सन्नती)
2. गांधार (कंधार)
3.मगध (सारनाथ)
4.कुरु (मेरठ)
5.कंबोज
6.शूरसेन
7.अवन्ति
8.वत्स
9.मत्स्य
10.चेदी
11.अंग
12.विदेह
13.पांचाल
14.वज्जि
15.काशी
16. मल्ल