Page 403 Class 12th Notes Home Science Chapter 1 शिशु को जानें
इकाई-1: शिशुओं को जानिये
जन्म के बाद माता की आवश्यकताएँ निम्न हैं-
1. कुशलतापूर्वक देखभाल
2. समर्थन तथा देखभाल (परिवारिक समर्थन का होना)
3. रोग संक्रमण पर नियंत्रण (ब्लेड पानी में उबालकर प्रयोग
करना)
4. जटिलताओं का प्रबंधन (रक्त स्राव होना, प्रसव
पीड़ा और असमय जन्म)
जन्म के बाद नवजात शिशुओं की आवश्यकताएँ निम्न
हैं-
1. वायु (साँस नहीं लेने पर सजीव करना)
2. गर्माहट (सुखाना, त्वचा से त्वचा संपर्क, ढँकना)
3. स्तनपान (4
घंटों के भीतर से 6 माह
तक)
4. देखभाल (माता-पिता या अन्य व्यस्क व्यक्ति)
5. रोग संक्रमण पर नियंत्रण (सफाई, स्तनपान)
6. जटिलताओं का प्रबंधन (कष्टकारी को दूर करना)
मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ :
1. गर्भावस्था (गर्भाधान से जन्म तक)
2. शैशवावस्था - (जन्म से 2 सप्ताह तक)
3. उत्तर शैशवावस्था (2 सप्ताह से 2 वर्ष तक)
4. बाल्यावस्था - (2 वर्ष से 12 वर्ष तक)
5. किशोरावस्था - (12 वर्ष से 21 वर्ष तक)
6. प्रौढ़ावस्था - (21 वर्ष से 40 वर्ष तक)
बालक का शारीरिक विकास :-
1. लंबाई- जन्म
के समय नवजात शिशु की औसत लंबाई 20
इंच होती है।
लड़कों की लंबाई लड़कियों की अपेक्षा आधा इंच
अधिक होती है।
प्रारंभ के 2 वर्षों तक तीव्र वृद्धि होती
है फिर धीमी हो जाती है।
2. भार या वजन- जन्म के समय नवजात शिशु का औसत भार 2.5 Kg से 3.5 Kg तक होती है।
बालिका का भार 7 पौंड या 3 Kg होता है।
जन्म से 3 वर्ष की आयु तक भार का 3 गुना होना।
3. शारीरिक अनुपात- सिर का आनुपातिक विकास।
जैसे : समस्त शरीर की लंबाई का - 25% जन्म के समय और समस्त शरीर की लंबाई का 10% वयस्क के समय।
चेहरे का आनुपातिक विकास– जन्म के समय चेहरा सिर की अपेक्षा छोटा होता है।
4. माँसपेशियों का विकास- ये विकास नहीं होने पर शारीरिक दुर्बलता।
5. दाँत- गर्भकालीन अवस्था के तीसरे माह से प्रारंभ होती है और 25 वर्ष तक चलती है।
दाँत दो प्रकार के होते हैं -
1. अस्थाई दाँत– ये 6 से 8 माह के मध्य निकलना प्रारंभ हो जाता है। इसकी संख्या 20 होती है।
2. स्थाई दाँत– ये 6 वर्ष से निकलना प्रारंभहो जाता है। इसकी संख्या 32 होती है। दाँत में कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा होती है।
W.H.O. (World Health
Organisation)– विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक
नया अंतरराष्ट्रीय बाल वृद्धि स्तर 27 अप्रैल 2006 को प्रस्तुत किया।
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक :
वंशानुगत- (जैसे : रंग, रूप, कद, लंबाई आदि)।
भौतिक वातावरण- (जैसे : उपयुक्त हवा, पानी, रोशनी की जरूरत आदि)।
आहार- (जैसे : आयु और लिंग के अनुसार पौष्टिक तत्व आदि)।
रोग- (जैसे : शरीर की गति रुक जाना, बचाव
हेतु संतुलित भोजन आदि)।
अंतःस्रावी ग्रंथियाँ- (जैसे : ग्रंथियों से निकलने वाले हार्मोन आदि)।
लड़खड़ाकर चलने वाले शिशुओं (24 तथा 30 माह) का विकास :
1. क्रियात्मक विकास - (जैसे : फुटबॉल को पकड़ना, क्षणभर के लिए एक पैर पर
खड़ा रहना, पेंसिल से घसीट कर लिखना आदि)।
2. संवेदनात्मक विकास- (जैसे: कपड़ों से खेलना, दाँतों पर बुश करना या बाल
काढ़ना, तेज ध्वनि की पहचान आदि)।
3. भाषागत विकास- (जैसे: मम्मी पापा, बाय-बाय, संख्या गिनने आदि)।
4. ज्ञानात्मक विकास- (जैसे : खिलौने को ढूँढ़ना, चित्र देखकर नाम बताना आदि)।
नोट :- जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है ये विकास कि सिलसिला
बढ़-चढ़कर होने लगती है।
बुद्धि के विकास को प्रभावित करने वाले तत्व :
1. वंशानुक्रम
2. शारीरिक स्वास्थ्य
3. आयु विभिन्नता
वृद्धि और विकास में अंतर बताइए :
1. वृद्धि-
वृद्धि मात्रात्मक होती है।
शारीरिक ऊँचाई, भार व शारीरिक अनुपात इसके
मुख्य सूचक हैं।
वृद्धि गर्भावस्था से परिपक्वता तक चलती है।
2. विकास- ये
मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों होता है।
इसमें शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ सामाजिक
मानसिक व संवेगात्मक परिवर्तनों का भी समावेश होता है।
विकास एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो
जन्म से मृत्यु के अंत तक चलता रहता है।
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व :
1. परिवार
2. पास-पड़ोस
3. विद्यालय
4. तीज, त्यौहार व परंपराएँ आदि।
ज्ञानात्मक विकास एवं अवस्थाएँ :
ज्ञानात्मक विकास: बच्चों की सोचने समझने व उनकी समस्याओं को सुलझाने की शक्ति
को ज्ञानात्मक विकास कहते हैं।
जीन पियाजे के अनुसार, ज्ञानात्मक
विकास की 4 अवस्थाएँ होती हैं -
1. संवेदनात्मक अवस्था (जन्म से 2 वर्ष तक):
इसमें ज्ञानेंद्रियों की सहायता से अनुभव करना
जैसे : प्रेम, क्रोध, घृणा, भय, हर्ष, ईष्या
आदि चीजें सीख लेता है।
2. पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (2 से 7 वर्ष
तक): यदि परिवार में कोई जूते या चप्पल पहनने लगे
तो समझ जाता है कि वह कहीं बाहर जा रहा है। इस उम्र में कल्पनाशील अधिक होता है।
3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (7 से 11 वर्ष
तक): इस उम्र में अधिक व्यवहारशील कल्पना व
वास्तविकता में अंतर करना सीख जाते हैं।
4. अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (11 से 16 वर्ष
तक): किसी भी विषयों में सोचना या तर्क देना बारीकी
से समझने लगता है।
महत्वपूर्ण बिंदु :-
1. नवजात शिशु को जन्म के 48 घंटे के अंदर B.C.G. का
टीका लगाना जरूरी होता है।
2. बिना
सहारे बच्चा खड़ा होना 9 से 12 महीने में सीख लेता है।
शिशु विकास की परिभाषा:
शिशु विकास का अर्थ है जन्म से लेकर किशोरावस्था
तक शारीरिक, मानसिक,
सामाजिक, भावनात्मक और बौद्धिक रूप से होने वाले निरंतर और
क्रमिक परिवर्तन।
विकास के सिद्धांत:
सिर से पाँव तक (Cephalocaudal Rule): विकास
सिर से शुरू होकर पैरों तक होता है।
अंदर से बाहर (Proximodistal Rule): विकास
पहले शरीर के केंद्र में और फिर बाहरी हिस्सों में होता है।
सतत प्रक्रिया: विकास निरंतर चलता रहता है।
क्रमिक होता है: विकास की प्रक्रिया एक तय क्रम में होती है।
शिशु का विकासात्मक चरण:
0-3 महीने |
सिर को घुमाना, मुस्कराना |
3-6 महीने |
पेट के बल पलटना, वस्तु
पकड़ना |
6-9 महीने |
बैठना, रेंगना |
9-12 महीने |
खड़ा होना, चलने
की कोशिश करना |
1-2 वर्ष |
चलना, सरल शब्द बोलना |
2-3 वर्ष |
छोटे वाक्य बोलना, रंग
पहचानना |
प्रारंभिक बाल्यावस्था (Early Childhood) की विशेषताएं:
जिज्ञासु स्वभाव
अनुकरण की प्रवृत्ति
नवीन वस्तुओं में रुचि
सामाजिक संपर्क की इच्छा
विकास में बाधाएँ:
कुपोषण
बीमारी या संक्रमण
पारिवारिक कलह
शिक्षा का अभाव
पर्याप्त देखभाल न मिलना
माता-पिता व देखभाल करने वालों की भूमिका:
शिशु को सुरक्षित वातावरण देना
संतुलित आहार देना
प्रेम और सुरक्षा का अनुभव कराना
समय-समय पर स्वास्थ्य जांच कराना
खेलों और गतिविधियों में भाग लेने देना
बाल्यावस्था और किशोरावस्था क्या है?
बाल्यावस्था (Childhood):- 3 से 12 वर्ष
सीखने की तीव्र इच्छा, कल्पनाशीलता, सामाजिकता
का आरंभ
किशोरावस्था (Adolescence):- 13 से 18 वर्ष शरीर में हार्मोन
परिवर्तन, आत्म-चेतना, स्वतंत्रता की भावना
बाल्यावस्था की विशेषताएँ (Characteristics of Childhood)
तीव्र सीखने की अवस्था – बच्चा
तेजी से भाषा, संख्याएँ,
सामाजिक व्यवहार सीखता है।
जिज्ञासा और कल्पनाशीलता – हर वस्तु
को जानने-समझने की कोशिश करता है।
अनुकरण प्रवृत्ति– बड़ों का व्यवहार देखकर उसे दोहराता है।
नैतिक विकास की शुरुआत– सही-गलत
का बोध आरंभ होता है।
खेल और गतिविधियों में रुचि– बच्चा खेल-खेल में सीखता है।
सामाजिकता का विकास– मित्र बनाना, समूह में रहना पसंद आता है।
किशोरावस्था की विशेषताएँ (Characteristics of Adolescence)
शारीरिक परिवर्तन
लड़कों में: मूँछ-दाढ़ी आना, मांसपेशियों
का विकास
लड़कियों में: स्तनों का विकास, मासिक
धर्म आरंभ
दोनों में: लंबाई में वृद्धि, त्वचा
में परिवर्तन (मुंहासे आदि)
मानसिक विकास
निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है
आत्म-चिंतन और तर्कशक्ति में वृद्धि होती है
भावनात्मक परिवर्तन
गुस्सा, चिढ़चिढ़ापन, अकेलेपन की भावना
प्रेम और आकर्षण की शुरुआत
सामाजिक परिवर्तन
दोस्तों के साथ समय बिताना पसंद
स्वतंत्रता की भावना और व्यक्तिगत पहचान बनाना
मूल्य और नैतिकता का विकास
आत्म-सम्मान, उद्देश्य और जीवन के प्रति दृष्टिकोण
बनना शुरू होता है
किशोरों की आवश्यकताएँ
सकारात्मक मार्गदर्शन
संतुलित आहार और व्यायाम
मनोवैज्ञानिक सहयोग और समझ
स्वास्थ्य शिक्षा और यौन शिक्षा
शिक्षा और करियर संबंधी जानकारी
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1. बाल्यावस्था की आयु सीमा क्या है?
उत्तर: 3 वर्ष से 12 वर्ष तक की आयु को बाल्यावस्था कहते हैं।
प्रश्न 2. किशोरावस्था में कौन से हार्मोनल परिवर्तन होते हैं?
उत्तर: यौन हार्मोन (टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजेन) सक्रिय होते हैं।
प्रश्न 3. किशोरावस्था में सामाजिक परिवर्तन का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर: किशोर दोस्तों के साथ अधिक समय बिताना पसंद करते हैं।
प्रश्न 4. बचपन की एक विशेषता लिखिए।
उत्तर: जिज्ञासा और सीखने की तीव्र इच्छा।
लघु उत्तरीय प्रश्न (2–3 अंक)
प्रश्न 5. किशोरावस्था में होने वाले दो शारीरिक परिवर्तन लिखिए।
उत्तर:
लंबाई में तीव्र वृद्धि
लड़कों में मूँछ-दाढ़ी आना; लड़कियों
में स्तनों का विकास
प्रश्न 6. बाल्यावस्था की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
कल्पनाशीलता
अनुकरण की प्रवृत्ति
सामाजिक व्यवहार का आरंभ
प्रश्न 7. किशोरों की दो मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ बताइए।
उत्तर:
आत्म-समर्पण और समझ पाने की आवश्यकता
करियर और भविष्य के प्रति मार्गदर्शन
प्रश्न 8. किशोरावस्था की दो समस्याएँ क्या हो सकती हैं?
उत्तर:
भावनात्मक असंतुलन
नशे की आदत या गलत संगत
प्रश्न 9: किशोरावस्था की 5 विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: किशोरावस्था (13 से 18 वर्ष की आयु) जीवन का संक्रमणकाल है, जिसमें
बालक से वयस्क बनने की प्रक्रिया चलती है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
शारीरिक परिवर्तन:
शरीर में तीव्र वृद्धि होती है— जैसे लंबाई बढ़ना, लड़कों में मूँछ-दाढ़ी आना, लड़कियों
में स्तनों का विकास, मासिक धर्म शुरू होना।
मानसिक विकास:
सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि
होती है। तर्कशक्ति का विकास होता है।
भावनात्मक अस्थिरता:
किशोर जल्दी गुस्सा होते हैं, चिड़चिड़े
हो सकते हैं, और भावनाएँ तीव्र होती हैं (जैसे आकर्षण, अकेलापन)।
सामाजिक बदलाव:
मित्रों के साथ समय बिताना पसंद करते हैं। परिवार
से दूरी और स्वतंत्रता की भावना बढ़ती है।
आत्म-चेतना और पहचान की खोज:
किशोर अपनी पहचान बनाने का प्रयास करते हैं, उन्हें
यह जानने की जिज्ञासा होती है कि वे कौन हैं और समाज में उनका क्या स्थान है।
प्रश्न 10: बचपन और किशोरावस्था में क्या अंतर है?
क्रम |
बचपन |
किशोरावस्था |
1. |
3 से 12 वर्ष की आयु |
13 से 18 वर्ष की आयु |
2. |
सीखने और खेल की अवस्था |
आत्म-चेतना और परिवर्तन की अवस्था |
3. |
शारीरिक विकास धीमा और नियमित होता है |
शारीरिक विकास तीव्र और असमान होता है |
4. |
बच्चा माता-पिता पर निर्भर रहता है |
किशोर स्वतंत्रता की भावना रखता है |
5. |
सामाजिक संबंध सीमित होते हैं |
सामाजिक दायरा बढ़ता है, मित्रता
में रुचि |
अभ्यास पत्र
भाग – A :
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)(प्रत्येक
उत्तर एक वाक्य में दें)
1. बाल्यावस्था
की आयु सीमा क्या है?
2. किशोरावस्था किस आयु वर्ग में आती है?
3. किशोरावस्था में कौन-से हार्मोन सक्रिय होते हैं?
4. किशोरावस्था में कौन-सा प्रमुख सामाजिक परिवर्तन
होता है?
5. अनुकरण की प्रवृत्ति किस अवस्था में पाई जाती है?
भाग – B :
लघु उत्तरीय प्रश्न (2 से 3 अंक) (30-50 शब्दों में उत्तर दें)
1. बाल्यावस्था की दो विशेषताएँ लिखिए।
2. किशोरों की दो प्रमुख समस्याएँ बताइए।
3. किशोरावस्था में आत्म-चेतना का क्या अर्थ है?
4. माता-पिता किशोरों की कैसे मदद कर सकते हैं?
5. किशोरों को किन मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति चाहिए?
भाग – C :
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (4 से 5 अंक) (100-150 शब्दों में उत्तर दें)
1. किशोरावस्था
की पाँच विशेषताएँ विस्तार से लिखिए।
2. बचपन और किशोरावस्था के बीच कोई पाँच प्रमुख अंतर बताइए।
3. किशोरों में होने वाले शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों का वर्णन
कीजिए।
4. एक अच्छे शिक्षक की भूमिका किशोरों के जीवन में क्या हो सकती
है?
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