Page 339 - वृक्षारोपण

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वृक्षारोपण

प्रस्तावना - भारतवर्ष प्राकृतिक सुरम्यता, रमणीयता और वासन्ती वैभव के लिए विश्व में प्रसिद्ध रहा है। विदेशी यात्री, पर्यटक और आक्रान्ता यहाँ की मनोहारी प्राकृतिक सुषमा को देखकर इतने मुग्ध हो जाते थे कि वे अपने देश को भूलकर इसी स्वर्गिक भारतभूमि को अपना देश समझने लगते थे । भारत के प्राचीन इतिहास के पृष्ठों में ऐसी घटनाएँ आज भी सन्निहित है।
भारतीय संस्कृति में वृक्षों का महत्त्व- भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता में वृक्षों की पूजा की जाती थी और उनके साथ मनुष्यों की भाँति आत्मीयता बरती जाती थी। उनके सुख-दुःख का ध्यान रखा जाता था। देवता की भाँति पीपल के वृक्ष की पूजा अर्चना होती थी। स्त्रियाँ व्रत रखकर उनकी परिक्रमा करतीं और जलार्पण करती थी। केले के वृक्ष का पूजन भी शास्त्रों में उल्लिखित है। तुलसी के पौधे की पूजा उतना ही महत्त्व रखती थी जितना कि भगवान की स्तुति । बेल के वृक्ष के पत्तों की इतनी महिमा थी कि भगवान शिव के मस्तक पर चढ़ायें जाते हैं। उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दी के मध्य तक वृक्ष काटने वाले मनुष्यों को अपराधी समझा जाता था और दण्डनीय होता था।

वृक्षों की कटाई : औद्योगीकरण के कारण वृक्षों और वनों को काटा गया। वहाँ आवास-बस्तियाँ बनी, कृषि योग्य भूमि को फैक्ट्री खोलने के लिए दिया गया। सघन वन कुंजों का स्थान फैक्टरियों ने ले लिया। वृक्ष निदर्यता के साथ काट डाले गए। उनसे जो भूमि प्राप्त हुई, वह नवीन उद्योग की स्थापना में काम आई ।

दुष्परिणाम : इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि भारतवर्ष की जलवायु में नीरसता एवं शुष्कता आ गई। प्राकृतिक सुरम्यता एवं रमणीयता का अभाव मानव हृदय को दुःखी कर देता है।

वायु प्रदूषण : महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला हुआ है। वहाँ चौबीसों घंटे घंटे कल-करखानों का धुआँ, मोटर वाहनों का काला धुआँ इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु की कल्पना तक नहीं की जा सकती।