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आदर्श अध्यापक
भूमिका
: शिक्षक शब्द
परंपरा से चली आ रही गुरु-शिष्य परंपरा का हिन्दी रूपांतर है। भारतीय संस्कृति में
गुरु-शिष्य परंपरा चली आ रही है जिसमें राम और कृष्ण भी गुरुकुल में रहे। गुरु की
कुछ विशेषताएँ होती हैं।
शिक्षक में उस
कृषक की सूझ-बूझ हो, जिसे मौसम और मिट्टी की पहचान होती है।
शिक्षक में कुम्भकार की दक्षता हो,
जिसे आकार देने की
महारत हासिल हो।
शिक्षक में मालकार
की पटुता हो, जो रूप और रंग को परख करके गुलदसता बनाने
का हुनर जानता हो।
परिचय: ऐसे ही हमारे विद्यालय में शिक्षक हैं, शान्तनु कुमार दूबे जो हमारे प्रिय शिक्षक हैं। वे अति मृदुभाषी, सहनशील, कर्तव्यनिष्ठ, सदाचारी, अनुशासनप्रिय है। वे सदा जीवन उच्च विचार
के प्रतीक हैं। मेरे शिक्षक सरस्वती के वरपुत्र हैं। वे हिन्दी, अंग्रेजी और गणित के इतने अच्छे जानकार हैं कि वह वर्ग में ही विद्यार्थी को
हिन्दी विषय के सभी आयामों शुद्ध उच्चारण,
व्याकरण के सभी
नियमों, अंग्रेजी के सभी विन्यास, गणित के कई तरह के फार्मूलों इत्यादि को इतने सहज ढंग से समझाते हैं कि
विद्यार्थियों को उसे पुनः पढ़ने की आवश्यकता महसूस नहीं होती ।
हमारे शिक्षक
अनुशासन प्रिय इतने हैं कि स्कूल प्रागंण में उनके प्रवेश से ही लगता है कि स्कूल
प्रांगण अनुशासित हो गया है। सभी शिक्षक यहाँ तक प्रधानाध्यापक भी उनकी इज्जत करते
हैं। विद्यार्थी को वे कभी भी मारते नहीं,
नजर की खेल दिखाते
हैं, जो अनुशासन की पहली सीख है।
हमारे शिक्षक
सदाचार के इतने पवित्र हैं कि 'सादा जीवन,
उच्च विचार' उनके जीवन का अंग बन गया है। खादी की धोती,
खादी का कुर्ता ही
उनकी सर्वप्रिय पोशाक है जो उनके गाँधीवादी होने का पुख्ता सबूत देती है। स्कूल
में समय से आना और समय से जाना उनकी दिनचर्या है। स्कूल के सभी नियमों का पालन वे
स्वयं भी सावधानी से करते हैं और अपने विद्यार्थियों को भी पालन करने की शिक्षा
देते हैं।
अतः हमारे शिक्षक
श्री शान्तनु दूबे जी बहुत ही प्रिय हैं। मैं उनके निर्देशन में राष्ट्र के भावी
कर्णधार बनने की प्ररेणा ग्रहण करता हूँ और आशा करता हूँ कि उनके आचार-विचार सादगी, सत्यवादिता, अनुशासनप्रियता हमें आगे बढ़ाने में
सहायक होगी ।