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राष्ट्रीय एकता
भूमिका- कहावत है एक नारी को शिक्षा देने का
अर्थ है पूरे परिवार को शिक्षा देना। यह सच भी है क्योंकि बच्च्चा जन्म से लेकर
युवावस्था तक अपनी माँ के ही सम्पर्क में रहता है और यदि माँ शिक्षित हुई तो
अनायास ही वह अपने बच्चों को शिक्षित कर सुयोग्य नागरिक बनाने में बहुमूल्य योगदान
करती है।
नारी-शिक्षा
का महत्त्व- इस प्रकार स्पष्ट है कि नारी शिक्षा का महत्त्व बहुत है। वस्तुतः यह राष्ट्रीय महत्त्व
का विषय है। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने आरम्भ में नारी शिक्षा पर बहुत जोर
दिया जिसके कारण देश में विद्योत्तमा,
मैत्रेयी, गार्गी, लोपामुद्रा और भारती जैसी विदुषी नारियाँ
हुई और ज्ञान-विज्ञान में पुरुषों को भी पराजित कर सबको चकित कर दिया। लेकिन
ज्ञान-दान की यह धारा मध्य युग में आकर सूख गई। सच तो यह है कि पुरुष और नारी
दोनों ही समाजरूपी रथ को खींचने वाले दो पहिए हैं। एक के भी कमजोर होने से समाज
ठीक से नहीं चल सकेगा। एक के अशिक्षित रहने से समाज शिक्षित नहीं रहेगा और समाज
पूरी तरह शिक्षित नहीं रहा तो राष्ट्र
कभी भी उन्नति
नहीं कर सकेगा।
देश-कार्यों
में नारी की भागीदारी- यह खुशी की बात है कि अंग्रेजों के आगमन और गाँधीजी की प्रेरणा से नारी-शिक्षा का एक नया अध्याय अपने देश में
शुरू हुआ। नारियाँ आज पूरी कुशलता से अपने दायित्वों का निर्वाह कर रही हैं। देश
ने महिला को अपना राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनाया है, वो न्यायाधीश के आसन पर भी विराजमान हैं। बिहार में तो पंचायतों में उनका आधा
हिस्सा है। लेकिन यह भी सच है कि शिक्षा के मामले में अभी के मामले में वे अभी
काफी पीछे हैं। अन्धविश्वास के गर्त में वे अभी पड़ी हुई हैं। हमारी अपेक्षित
उन्नति न होने का यह भी एक प्रमुख कारण है।
समुचित
शिक्षा की जरूरत- लेकिन, इस सम्बन्ध में एक बात का उल्लेख करना आवश्यक है। वह यह कि अभी जो
शिक्षा दी जा रही है, वह पश्चिमी शिक्षा है और वहाँ के समाज के
ही अनुकूल है। भारतीय समाज दूसरे ढंग का है। अतः अपने समाज के अनुसार ही इन्हें
शिक्षा दी जानी चाहिए । हमारी स्त्रियों का अधिकांश समय घर पर ही बीतता है। इसलिए
ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए कि गृह-कार्य के सम्पादन के पश्चात् उनके पास जो समय
बचता है उसमें वे अर्थोपार्जन कर सकें ।
उपसंहार- आज देश को उनकी भागीदारी की बड़ी आवश्यकता है। हमें उनके लिए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि वे घर और बाहर दोनों को कुशलतापूर्वक सम्भाल सकें ।