Page 345 - साम्प्रदायिकता : एक अभिशाप
साम्प्रदायिकता : एक अभिशाप
साम्प्रदायिकता
का अर्थ और कारण- सम्प्रदाय एक ऐसे जन समूह
को कहा जाता है जो
एक ही भगवान या देवी-देवता सम्बन्धी किसी एक ही प्रकार की पूजा-पद्धति पर विश्वास
रखता हो। उसका औपचारिक स्तर पर आचरण और व्यवहार भी एक जैसा ही हो। इन तथ्यों के
आलोक में साम्प्रदायक रचना की मूल अवधारणा,
बुनकर और बनावट
में कुछ भी तो अनुचित, असंवैधानिक या आक्षेप योग्य नहीं कहा जा
सकता।
इस प्रकार
साम्प्रदायिकता एक मनोभाव है जो आदमी को विचार से संकुचित बनाता है। यह एक भावना
है जिससे आदमी के मूल्य समाप्त हो जाते हैं। यह मानवता के नाम पर दानवता का आवरण
हैं। किसी धार्मिक मतवाद या सम्प्रदाय के प्रति आग्रह जो सहिष्णुता को जन्म देता
है, उसे साम्प्रदायिकता कहते हैं।
सर्वव्यापक
समस्या - आज का वातावरण हर
दृष्टि से भयावह एवं विस्फोटक बन चुका है। कहाँ,
कब, क्या हो जाए कोई कुछ नहीं कर सकता । ऐसे समय में विशेष सावधान रहना जरूरी है। आम जन के लिए तो
सावधान रहना आवश्यक है ही, विभिन्न सम्प्रदायों को भी यह सोचकर
सतर्क रहना आवश्यक है कि जब भाग्य इसी पृथ्वी के साथ जुड़ चुका है, यहीं पर रहना है तो अपने आप को किसी भी स्तर पर,
किसी भी दृष्टि से
उन तत्वों के हाथ का खिलौना न बनने दिया जाए कि जो इस देश की शांति भंग कर अपने
निहित स्वार्थ को पूरा करना चाहते हैं।
भारत
में साम्प्रदायिकता- साम्प्रदायिकता का जन्म हमारे देश में तब हुआ जब मुसलमान शासकों द्वारा
जबर्दस्ती हिन्दू से मुसलमान बनाने का अभियान शुरू किया। इस साम्प्रदायिकता को
अंग्रेजों ने और अधिक हवा दी। इसका भयानक परिणाम हुआ भारत का विभाजन ।
साम्प्रदायिक
घटनाएँ- अयोध्या में
बाबरी विध्वंस की घटना, गोधरा कांड,
पंजाब का
खालिस्तान आंदोलन आदि घटनाएँ साम्प्रदायिकता की ही देन है। आज भारत में हमेशा कहीं
न कहीं हिन्दू-मुस्लिम विवाद होते ही रहते हैं।
समाधान- साम्प्रदायिकता की बीमारी का इलाज हो
सकता है। इसके लिए हमें आध्यात्मिक दृष्टि में परिवर्तन करना होगा। चुनाव में
साम्प्रदायिकता के हथकड़े ने लड़नेवाले राजनेता अपनी इंसानियत की राह अपना ले तो
इसका समाधान हो सकता है।