Page 356 - मित्रता

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मित्रता

भूमिका- मित्रता का अर्थ है- परस्पर निःस्वार्थ एवं सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध की स्थापना। मित्रता एक व्यापक अर्थ रखता है। एक सच्चा मित्र अपने संगे-सम्बन्धियों से भी अधिक विश्वसनीय, सच्चा सहचर तथा हितैषी होता है। विपत्ति में वह अपने मित्र के लिए अपने जीवन की आहुति देने को सदैव तत्पर रहता है।
मित्र चयन में सतर्कता- मित्र का चयन करने में सदैव सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। सच्चा मित्र हमारे सुख-दुःख में निःस्वार्थ भाव से हमारी सहायता करता है। हम अपने कष्टों से समस्याओं का उससे खुलकर चर्चा कर सकते हैं। जो बातें हम अपने परिवार के सदस्यों को नहीं बतलाते, अपने मित्र को बिना किसी हिचकिचाहट के प्रकट कर देते हैं। इसके विपरीत कपटी मित्र से सदैव हानि तथा खतरे ही संभावना रहती है। वे चापलूस एवं धूर्त होते हैं जबकि सच्चे मित्र स्पष्टवादी, निष्कपट तथा सात्विक विचारवाले होते हैं।

सच्चे मित्र से लाभ- सुच्चे मित्र की संगति से लाभ ही लाभ है। सत्संगति कल्पलता के समान है। कबीरदास जी का कथन है

"कबिरा संगति साधु की हरै और की व्याधि ।
संगति बुरी असाधु की आठों पहर उपाधि ।।"

अभिशाप अच्छे मित्रों के सानिध्य से बिगड़े हुए काम भी बन जाते हैं तथा स्वर्गीय आनन्द की अनुभूति होती है।
बुरे मित्र से हानि- बुरे मित्र से हानि ही हानि है। वह कभी चैन से रहने नहीं देता है। उसका एक मात्र उद्देश्य मित्र से अनुचित लाभ उठाना होता है। समय पड़ने पर वह मित्र के शत्रु से भी हाथ मिलाकर उसे (मित्र को) खतरे में झोंक देता है।

उपसंहार- सच्ची मित्रता गंगाजल के समान निर्मल होती है जिसके स्पर्शमात्र से हृदय पवित्र हो जाता है। धन-दौलत, सम्मान, ऐश्वर्य एवं सम्पन्नता भी सच्ची मित्रता के सामने तुच्छ है।