Page 158 - कक्षा 10वीं भौतिकी मानव नेत्र नोट
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मानव नेत्र |
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1. मानव नेत्र : मानव नेत्र यह एक प्राकृतिक प्रकाशीय उपकरण है जिसका उपयोग मानव द्वारा वस्तुओं को देखने के लिए किया जाता है। यह एक कैमरे की तरह है जिसमें लेंस और स्क्रीन सिस्टम होता है।
(i) रेटिना: यह आंख के अंदर एक प्रकाश संवेदनशील स्क्रीन है जिस पर छवि बनती है। इसमें छड़ें और शंकु होते हैं।
(ii) कॉर्निया : यह एक पतली झिल्ली होती है जो नेत्रगोलक को ढकती है। यह एक लेंस की तरह काम करता है जो आंख में प्रवेश करने वाले प्रकाश को अपवर्तित करता है।
(iii) जलीय हास्य: यह तरल पदार्थ है जो कॉर्निया और आंख के लेंस के बीच की जगह को भरता है।
(iv) नेत्र लेंस: यह एक उत्तल लेंस है जो पारदर्शी और लचीले जेली जैसे पदार्थ से बना होता है।
इसकी वक्रता को सिलिअरी मांसपेशियों की सहायता से समायोजित किया जा सकता है।
(v) पुतली: यह परितारिका के मध्य में एक छिद्र है जिसके माध्यम से प्रकाश आँख में प्रवेश करता है। यह काला दिखाई देता है क्योंकि इस पर पड़ने वाला प्रकाश आंखों में चला जाता है और वापस नहीं आता है।
(vi) सिलिअरी मांसपेशियां: ये वे मांसपेशियां हैं जो आंख के लेंस से जुड़ी होती हैं और आंख के लेंस के आकार को संशोधित कर सकती हैं जिससे फोकल लंबाई में बदलाव होता है।
(vii) आइरिस: यह पुतली के आकार को बदलकर आंख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करता है।
(viii) ऑप्टिकल तंत्रिका: ये वे तंत्रिकाएं हैं जो छवि को विद्युत संकेतों के रूप में मस्तिष्क तक ले जाती हैं।
2. समायोजन शक्ति: पास की वस्तुओं (लगभग 25 सेमी) और दूर की वस्तुओं (अनंत पर) का स्पष्ट दृश्य प्राप्त करने के लिए सिलिअरी मांसपेशियों की मदद से नेत्र लेंस की फोकल लंबाई को बदलने की आंख की क्षमता समायोजन शक्ति कहलाता है ।
3. रंग अंधापन: कुछ लोगों में आनुवंशिक विकार के कारण कुछ शंकु कोशिकाएं नहीं होती हैं जो कुछ विशिष्ट रंगों पर प्रतिक्रिया करती हैं।
4. निकट दृष्टिदोष (मायोपिया) : यह मनुष्य की आंखों में होने वाला एक प्रकार का दोष है जिसके कारण व्यक्ति निकट की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु दूर की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाता। मायोपिया किसके कारण होता है?
(i) कॉर्निया की अत्यधिक वक्रता।
(ii) नेत्रगोलक का लम्बा होना।
5. हाइपरमेट्रोपिया (दीर्घ दृष्टि दोष) : यह मानव आंख में एक प्रकार का दोष है जिसके कारण
व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो ठीक से देख पाता है लेकिन पास की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसा इसलिए होता है
को
(i) नेत्र लेंस की क्षमता में कमी अर्थात नेत्र लेंस की फोकल लंबाई में वृद्धि।
(ii) नेत्रगोलक का छोटा होना।
6. प्रेसबायोपिया : यह इंसान की आंखों में होने वाला एक प्रकार का दोष है जो उम्र बढ़ने के कारण होता है। ऐसा इसलिए होता है
को
(i) नेत्र लेंस के लचीलेपन में कमी।
(ii) सिलिअरी मांसपेशियों का धीरे-धीरे कमजोर होना।
7. दृष्टिवैषम्य : यह मनुष्य की आंख का एक प्रकार का दोष है जिसके कारण व्यक्ति देख नहीं पाता है
(फोकस) एक साथ क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों रेखाएँ।
8. मोतियाबिंद : आंख के लेंस के ऊपर झिल्ली बढ़ जाने के कारण आंख का लेंस धुंधला या धुंधला हो जाता है
अपारदर्शी भी. इससे दृष्टि में कमी या हानि होती है।
इस समस्या को मोतियाबिंद कहा जाता है। इसे केवल सर्जरी द्वारा ही ठीक किया जा सकता है।
9. काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण : श्वेत प्रकाश के विखंडन की घटना
जब यह कांच के प्रिज्म से गुजरता है तो अपने सात घटक रंगों में बदल जाता है, इसे सफेद प्रकाश का फैलाव कहा जाता है। देखे गए विभिन्न रंग बैंगनी, इंडिगो, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल हैं। रंगों का क्रम •VIBGYOR के रूप में याद रखें। सात रंगों के बैंड को स्पेक्ट्रम कहा जाता है।
10. श्वेत प्रकाश की संरचना : श्वेत प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना होता है अर्थात बैंगनी, आसमानी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल।
11. एकवर्णी प्रकाश: एक रंग या तरंग दैर्ध्य से युक्त प्रकाश को एकवर्णीय प्रकाश कहा जाता है, जैसे, सोडियम प्रकाश
12. बहुवर्णीय प्रकाश : दो से अधिक रंगों या तरंगदैर्घ्य से युक्त प्रकाश है
बहुरंगी प्रकाश कहा जाता है,
उदा. सफ़ेद रोशनी।
13. श्वेत प्रकाश का पुनर्संयोजन : न्यूटन ने पाया कि जब एक उल्टे प्रिज्म को विसरित प्रकाश के मार्ग में रखा जाता है तो प्रिज्म से गुजरने के बाद वे पुन: संयोजित होकर श्वेत प्रकाश बनाते हैं।
14.इंद्रधनुष का निर्माण : पानी की बूंदें छोटे प्रिज्म की तरह कार्य करती हैं। वे आपतित सूर्य के प्रकाश को अपवर्तित और फैलाते हैं, फिर इसे आंतरिक रूप से परावर्तित करते हैं, और अंत में इसे फिर से अपवर्तित करते हैं
बारिश की बूँद से निकलता है. प्रकाश के फैलाव और आंतरिक परावर्तन के कारण अलग-अलग रंग प्रेक्षक की आँख तक पहुँचते हैं।
15. वायुमंडलीय अपवर्तन: पृथ्वी के वायुमंडल (विभिन्न ऑप्टिकल घनत्व की वायु परतों वाले) के कारण होने वाले प्रकाश के अपवर्तन को वायुमंडलीय अपवर्तन कहा जाता है।
16. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य का रंग: दोपहर के समय, सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल से अपेक्षाकृत कम दूरी तय करता है, इस प्रकार सफेद दिखाई देता है क्योंकि केवल थोड़ा नीला और बैंगनी रंग बिखरा होता है। क्षितिज के पास, अधिकांश नीली रोशनी और छोटी तरंग दैर्ध्य बिखरी हुई है और सूर्य लाल दिखाई देता है।
17. प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of light ) :- जब श्वेत प्रकाश कुछ विशेष प्रकार के पदार्थों पर पड़ता है तो पदार्थ के कण प्रकाश कॉम अवशोषित करलेते है तथा पुनः उसको सभी दिशाओं में उत्सर्जित करते है , इस क्रिया को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है ।
17. प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of light ) :- जब श्वेत प्रकाश कुछ विशेष प्रकार के पदार्थों पर पड़ता है तो पदार्थ के कण प्रकाश कॉम अवशोषित करलेते है तथा पुनः उसको सभी दिशाओं में उत्सर्जित करते है , इस क्रिया को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है ।
• मानव नेत्र की बनावट तथा क्रिया का सचित्र वर्णन करें ।
बनावट :-
मानव नेत्र लगभग गोलाकार होता है। इसके सामने की सबसे उपरि उभरी हुई झिल्ली को कारनिया कहते है। इसके पिछे के रंगीन परत को परितारिका कहते है। इसके मध्य एक छोटा गोल छिद्र होता है। जिसको पुतली कहते है। उसके पिछे एक उत्तल लेंस रहता है। जिसको नेत्र लेंस कहते हैं। यह निलम्बक बन्धन द्वारा सिलयरि माँसपेशियों द्वारा लटका रहता है।आँख के सबसे पिछले भाग को दृष्टि पटल कहते है। इसका सम्बन्ध दृक ताँत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क से रहता है।
मानव नेत्र लगभग गोलाकार होता है। इसके सामने की सबसे उपरि उभरी हुई झिल्ली को कारनिया कहते है। इसके पिछे के रंगीन परत को परितारिका कहते है। इसके मध्य एक छोटा गोल छिद्र होता है। जिसको पुतली कहते है। उसके पिछे एक उत्तल लेंस रहता है। जिसको नेत्र लेंस कहते हैं। यह निलम्बक बन्धन द्वारा सिलयरि माँसपेशियों द्वारा लटका रहता है।आँख के सबसे पिछले भाग को दृष्टि पटल कहते है। इसका सम्बन्ध दृक ताँत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क से रहता है।
क्रिया:-
जब कीसी वस्तु से प्रकाश की किरणें चलकर आँखें पर पड़ती है। तो नेत्र लेंस उसका वास्तविक और उल्टा प्रतिबिम्ब दृष्टि पटल पर बनता है। रेटिना में उपस्थित कुछ पदार्थ इसको विधुत संकेत में प्रवर्तित कर देती है। जो दृक तत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क में पहुँचता है तथा मस्तिष्क उसको पुनः प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है और उसको वस्तु के सिधा प्रतिबिम्बका अभास होता है।
नोट :-
(i) आईरीस प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करता है।
(ii) सिलियरि मांसपेशी नेत्र लेंस की फोकस दूरी को नियंत्रित करती है।
(ii) सिलियरि मांसपेशी नेत्र लेंस की फोकस दूरी को नियंत्रित करती है।
• Defects of Eyes (नेत्र दोष) :-
नेत्र द्वारा किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब Retina (रेटिना) पर नही बनने की क्रिया को Defects of Eyes या नेत्र दोष कहते है।
नेत्र द्वारा किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब Retina (रेटिना) पर नही बनने की क्रिया को Defects of Eyes या नेत्र दोष कहते है।
• Least distance of distinct vision (स्पष्ट दृष्टि की न्यूनत्तम दूरी) :-
वह न्यूनत्तम दुरी जहाँ तक समान्य आँखों द्वारा वस्तुओं को साफ- साफ देखा जा सकता है , उसको Least distance of distinct vision या स्पष्ट दृष्टि की न्यून्तम दूरी कहते है ।
इसको D से निरूपित किया जाता है ।
स्पष्ट दृष्टि की न्यून्तम दूरी 25 CM होता है ।
वह न्यूनत्तम दुरी जहाँ तक समान्य आँखों द्वारा वस्तुओं को साफ- साफ देखा जा सकता है , उसको Least distance of distinct vision या स्पष्ट दृष्टि की न्यून्तम दूरी कहते है ।
इसको D से निरूपित किया जाता है ।
स्पष्ट दृष्टि की न्यून्तम दूरी 25 CM होता है ।
• Normal. Eye ( समान्य नेत्र) :- वह नेत्र जिसमें किसी प्रकार का दोषा न हो, उसको Normal Eye या समान्य नेत्र कहते हैं।
• नेत्र दोष मुख्यतः तीन प्रकार के होते है
(i) Hyper metropia or Long sightedness (दीर्घ दृष्टि दोष या दूर दृष्टि दोष)
(ii) Myopia or short sightedness (लघु दृष्टि दोष या निकट दृष्टि दोष)
(i) Hyper metropia or Long sightedness (दीर्घ दृष्टि दोष या दूर दृष्टि दोष)
(ii) Myopia or short sightedness (लघु दृष्टि दोष या निकट दृष्टि दोष)
(i) दीर्घ दृष्टि दोष :- यदि कोई आदमी दुर की वस्तुओं को तो साफ-साफ देख लेता है। परन्तु वह निकट की
वस्तुओं को अर्थात 25cm की दूरी पर स्थित वस्तुओं को साफ-साफ नही देख सकता है तोउसके नेत्र के इस दोष को दीर्घ दृष्टि दोष कहते है।
इस अवस्था में प्रतिबिम्ब Retina के पिछे बनता है।
इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है।
(ii) लघु दृष्टि दोष :- चदि कोई आदमी निकट की वस्तुओं को साफ -साफ
इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है।
(ii) लघु दृष्टि दोष :- चदि कोई आदमी निकट की वस्तुओं को साफ -साफ
देख सकता है। परन्तु दूर की वस्तुओं के साफ - साफ नही देख सकता हो, तो उसकी नेत्र के इस दोष को लघु दृष्टि दोष कहते है।
इस आवस्था में प्रतिबिम्ब Retina के आगे बनता है।
इस दोष को दूर करने लिए अवतल लेंस का प्रयोग किया। जाता है।
इस आवस्था में प्रतिबिम्ब Retina के आगे बनता है।
इस दोष को दूर करने लिए अवतल लेंस का प्रयोग किया। जाता है।
• Far point (दूर बिन्दु) :- सबसे दूर का वह बिन्दु जहाँ तक लघु दृष्टि दोष वाला आदमी देख सकता है उसको दूर बिन्दु कहते है।
इसको F से निरूपित किय जाता है।
• Near Point (नजदीकी या निकट बिन्दु) :- सबसे नीकट का वह बिन्दु जहाँ तक दीर्घ दृष्टि दोष वाला आदमी देख सकता है। उसको निकट बिन्दु कहते है।
इसको N से निरूपित किया
इसको N से निरूपित किया
• पृथ्वी से आसमान नीला क्यों दिखाई देता है?
Ans:-
जब श्वेत प्रकाश की किरणें वायुमंडल में प्रवेश करती हैं तो वायुमंडल के अणु तथा अन्य कण श्वेत प्रकाश में उपस्थित नाल रंग को अत्यधिक प्रकृणित करती है। इसप्रकार नीला रंग चारों ओर फैल जाता है। इसलिए पृथ्वी से आसमान निला दिखाई देता है।
Ans:-
जब श्वेत प्रकाश की किरणें वायुमंडल में प्रवेश करती हैं तो वायुमंडल के अणु तथा अन्य कण श्वेत प्रकाश में उपस्थित नाल रंग को अत्यधिक प्रकृणित करती है। इसप्रकार नीला रंग चारों ओर फैल जाता है। इसलिए पृथ्वी से आसमान निला दिखाई देता है।
• यांतरिक्ष यात्री को अकाश काला क्यों दिखाई देता है ?
Ans:-
आंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में उस स्थान पर होती है, जहाँ पर वायुमंडल नही होता है। इसलिए वहाँ प्रकृणन नही होता है। इसलिए आसमान उनको काला दिखाई देता है
• तारे टिमटिमाते हैं क्यों?
Ans:-
Ans:-
वागमंडलीय प्रतों के घनत्व बदलते रहने के कारण तारे से चली हुई प्रकाश कि किरणें इन प्रतों से अपवर्तित होकर अपनी असल मार्ग से कभी कम और कभी अधिक विचलीत होती है, इससे आंखों में प्रकाश कभी कम तो कमी - अधिक पहुँचती है, जिससे तारे टिमटिमाते दीखाई देते हैं।
• चन्द्रमा और ग्रह टिमटिमाते नहीं है, क्यों?
Ans:-
Ans:-
चन्द्रमा और ग्रह तारो की अपेक्षा पृथ्वी से बहुत निकट है। इसलिए इनको प्रकाश का विस्तृत स्रोत माना जाता है। इसलिए चन्द्रमाँ और ग्रहण द्वारा बनाए गए दर्शन कोण (visual angle) तारों द्वारा बनाए गये visual angle से बड़े होते है। यहि कारण है की चन्द्रमाँ और ग्रह टिमटिमाते नहीं है।
• हीरा क्यों चमकता है ?
Ans:-
हीरा का अपवर्तनांक 2.42 होता है। अपवर्तनांक अधिक होने के कारण इसका critical angle बहुत छोटा होता है। अतः इसको रीती (विधि) से काटने पर के बाद इसमें घुसने वाला प्रकाश उसके अन्दर से विभिन्न स्थानों से पूर्ण प्रावर्तीत होता है जिससे हीरा चमकता है।
हीरा का अपवर्तनांक 2.42 होता है। अपवर्तनांक अधिक होने के कारण इसका critical angle बहुत छोटा होता है। अतः इसको रीती (विधि) से काटने पर के बाद इसमें घुसने वाला प्रकाश उसके अन्दर से विभिन्न स्थानों से पूर्ण प्रावर्तीत होता है जिससे हीरा चमकता है।
• ब्लैक बोर्ड काला क्यों दिखाई देता है?
Ans:-
ब्लैक बोर्ड पर पड़ने वाली को श्वेत प्रकाश को ब्लैक बोर्ड अवशोषित कर लेता है। इस प्रकार वह किसी भी रंग को प्रावतीत नही करता है। इसलिए ब्लैक बोर्ड काला दिखाई देता है ।
Ans:-
ब्लैक बोर्ड पर पड़ने वाली को श्वेत प्रकाश को ब्लैक बोर्ड अवशोषित कर लेता है। इस प्रकार वह किसी भी रंग को प्रावतीत नही करता है। इसलिए ब्लैक बोर्ड काला दिखाई देता है ।
Dear Asif Sir
