Page 137 Class 10th Biology Notes पाठ - परिवहन


पाठ -संवहन / परिवहन

संवहन / परिवहन (Transportation :- जीवों में उपापचयी क्रियाओं के संपादन के लिए उपयोगी पदार्थों (पोषक तत्त्व, CO2) को उनके मूल स्रोत से प्राप्त कर प्रत्येक कोशिकाओं तक पहुंचाने एवमं हानिकारक पदार्थों(CO2) को कोशिकाओं से निकाल कर गंतव्य स्थान तक पहुंचाने की क्रिया को परिवहन कहते है
हमारे शरीर में परिवहन का काम जो करते है उसे संवहन तंत्र कहते है

 

उपापचयी क्रिया:- हमारे शरीर में भोजन (कार्बोहाइड्रेट) का टूट कर उर्जा में परिवर्तित होना उपापचयी ( मेटाबॉजिल्म) कहलाता है।  

हृदय (Heart) :-  मानव हृदय एक पम्प की तरह होता है जो सारे शरीर में रक्त का परिसंचरण करता है। हृदय हृदयक पेशियों का बना होता है। यह पेरोकार्डियम नामक झिल्ली से ढका होता है। इसका भार लगभग 300 gm होता है। हृदय का आकार शंकुकार होता है। यह वक्षगुहा में हल्का बायी ओर होता है।

 

हृदय के भाग:- मनुष्य का हृदय (Heart) चार भागों में बँटा रहता है। जिसे हृदय कोष्टक (Heart Chamber) कहते है


हृदय कोष्टक (
Heart Chamber):  हृदय के अन्दर पाये जानेवाले गुहा (खाली स्थान) को चेम्बर कहते हैं, मानव हृदय चार चेम्बर वाला होता है।

अलिंद (Atrium /Auricle): यह हृदय का ऊपरी भाग होता है। शरीर से रक्त अलिंद के माध्यम से हृदय में प्रवेश करता है। यह दो प्रकार का होता है

 

(i) दायाँ अलिंद (Right Atrium ) :- हृदय के दायें भाग के ऊपरी कोष्टक को दायाँ अलिंद कहा जाता है। इस भाग में पूरे शरीर से विऑक्सीजनीत रक्त अर्थात कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रक्त (blood + CO₂) महाशिरा के द्वारा लाया जाता है।

 

(ii) बायाँ अलिन्द (Left Atrium):- हृदय के बायें भाग में ऊपरि कोष्टक को बायाँ अलिन्द कहा जाता है। फेफडे से ऑक्सीजनीकृत रक्त अर्थात ऑक्सीजन युक्त रक्त (blood + O2) हृदय के बायाँ अलिन्द में आता है।

 

निलय (Ventricle):- यह हृदय का निचला भाग होता है। यह रक्त को पम्प करता है। जिससे रक्त पूरे शरीर में फैल जाता है। यह भी दो प्रकार का होता है

 

(i) दायाँ निलय (Right Ventricle): हृदय के दायें भाग के निचले कोष्टक को दायाँ निलय कहा जाता है। दायाँ अलिंद से विऑक्सीजनित रक्त (blood + CO₂) दायाँ अलिंद से दायाँ निलय में गिरता है दायें निलय से विऑक्सीजनित रक्त को ऑक्सीजनीकृत (blood + O₂) करने के लिए फेफड़े में भेजा जाता है।

 

(ii) बायाँ निलय (Right Ventricle):- हृदय के बायें भाग का निचला कोष्टक बायाँ निलय कहलाता है। बायाँ अलिन्द से ऑक्सीजनीकृत रक्त (blood + CO2) बायाँ नियल में आता है, तथा यहाँ से महाधमनी के द्वारा यह ऑक्सीजनीकृत रूधिर पूरी शरीर के विभिन्न भागों तक भेजा जाता है।

 

हृदय के अन्दर रक्त का मार्गः शरीर से विऑक्सीजनीत रक्त (Blood + CO2) महाशिरा के माध्यम से दायाँ अलिंद में प्रवेश करता है। दायाँ अलिंद इस विऑक्सीजनीत रक्त को दायाँ निलय में छोड़ देता है। दायाँ नलिय इस विऑक्सीजनीत रक्त को फुफ्फुस धमनी के माध्यम से फेफड़ा में भेज/छोड़ देता है। रक्त फेफड़ा में पहुँचकर ऑक्सीजनीकृत (blood + O2) हो जाता है। फेफड़ा में यह ऑक्सीजनीकृत रक्त फुफ्फुस शिरा के माध्यम से बायाँ आलिंद में प्रवेश करता है। बायें अलिंद इस ऑक्सीजनीकृत रक्त को बायाँ निलय में छोड़ देता है। बायाँ निलय सबसे चौड़ा चेम्बर है यह शुद्ध रक्त को महाधमनी के माध्यम से पूरे शरीर में भेज देता है।

 

Note :-

दाहिना अलिंद तथा दाहिनी निलय के मध्य त्रीवलनीय कपाट (Tricuspid Valve) पाया जाता है।

बायां अलिंद तथा बायाँ निलय के मध्य द्विवलनीय कपाट (Bicuspid Valve) पाया जाता है।

नसें जाम हो जाती है जिस कारण Heart attack आ जाता है।

हृदय की धड़कनों को मापने के लिए स्टेथोस्कोप (Statho Scope) का प्रयोग किया जाता है।

आला के माध्यम से डॉक्टर लव - डब की आवाज सुनता है।

एक मिनट में हृदय 72 बार धड़कता है जबकि क्षुण अवस्था में एक मिनट में 150 बार धड़कता है।

एक बार हृदय के धड़कन से मात्र 70 ml blood ही अन्दर जाता है। अत: पूरा 5.5 लीटर blood अन्दर जाने के लिए हृदय को 72 बार धड़कना पड़ेगा।

हमारी नाडियों की धड़कन गति एक मिनट में 115 से 125 तक होती है।

 

रक्त नलिकाएँ (Blood Vesseles) :-  रक्त को ले आने तथा ले जाने वाले नसों को रक्त नलिकाएँ (रक्तवाहिनी) कहे हैं। यह काम धमनी, शिरा तथा केशिका करता है


धमनी (
Artery) : वे रक्त वाहिकाएँ जो जो रक्त को हृदय से शरीर के अन्य भागों तक ले जाती है है धमनी कहलाती है

 

शिरा (Vein) : वें रक्त वाहिकाएँ जो रक्त को शरीर के अन्य अंगों से हृदय तक लेकर आती हैं। शिराएँ कहलाती हैं।

केशिका (
Capillery): वे रक्त नलिकाएँ जो धमनियों और शिराओं को आपस में में जोड़ती है। यह एक पतली नस होती है। इसमें ऑक्सीजनीकृत तथा विऑक्सीजनीत रक्त दोनों मिलते है। केशिका के बाद रक्त कोशिका में प्रवेश करता है। कोशिका आँख में स्पष्ट दिखाई पड़ती है।

धमनी और शिरा में अंतर :

धमनी (Artery) :

शिरा (Vein) :

(1) हृदय से रक्त को शरीर के अन्य भागों तक पहुँचाने वाले रक्त नलिका को धमनी कहते हैं।

(1) शरीर के अन्य भागों से रक्त को हृदय तक लाने वाले रक्त नलिका को शिरा कहते है।

(2) यह शरीर के अधिक गहराई पर पाया जाता है। इसमें रक्त का speed अधिक होते है

(2) यह शरीर में कम गहराई पर पाया जाता है। इसमें रक्त का Speed कम होता है।

(3) इसका रंग लाल होता है।

(3) इसका रंग हल्का नीला होता है।

(4) इसमें रक्तदाब ऊँच होता है। इसलिए इसकी दीवारें मोटा होता है।

(4) इसमें रक्त दाब कम होती है। इसलिए इसकी दीवारें पतली होता है।

(5) इसमें ऑक्सीजन युक्त रक्त (blood + O2) प्रवाहित होता है।

अपवाद- फुफ्फुस धमनी (अशुद्ध रक्त)

(5) सामान्यतः शिराओं में CO2 रक्त प्रवाहित होता है

अपवाद- फुफ्फुस शिरा (शुद्ध रक्त)रक्त)

 

वहन माध्यम :-

 

रक्त कोशिकाएँ (Blood Cells):  रक्त एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो रक्त वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित संयोजी ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल मिल कर बनता है। इसका pH मान 7.4 होता है अर्थात् रक्त क्षारीय होता है।

 

रक्त का कार्य :-

रक्त पचे भोज्य पदार्थों का परिवहन करता है।

रक्त हार्मोन, CO₂, तथा O₂, का परिवहन करता है।

 रक्त उत्सर्जित पदार्थ का निषकासन करता है।
रक्त तापमान को नियंत्रित करता है। मलेरिया बुखार में Spleen प्रभावित होने के कारण शरीर का तापमान

 

रक्त प्लाज्मा:- यह रक्त का एक महत्वपूर्ण भाग है इसका 90% भाग जल होता है और 10% भाग में प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट होते हैं। प्लाज्मा में पाये जाने वाला प्रोटीन फ्राइब्रिनोजेन तथा प्रोथॉम्बिन होता है। यह दोनों प्रोटीन रक्त को थक्का बनाने (जमाने में मदद करते, जब रक्त प्लाज्मा में से फ्राइब्रिनोजेन नामक प्रोटीन निकाल लेते हैं तो शेष बचा हुआ रक्त ही सेरम कहलाता है। सेरम हल्के पीले रंग का होता है, बीमारियों की जाँच सेरम से की जाती है।

 

रक्त कण (Corpuscle):  यह रक्त का कणिकीय भाग होता है। इसे तीन भागों में बांट सकते हैं।

1. लाल रक्त कोशिका (R.B.C) :

2. श्वेत रक्त कोशिका (W.B.C) :

3. प्लेटलेट्स (बिम्बाणु) :

 

1. लाल रक्त कोशिका (R.B.C - Real Blood Corpuscle) :-
लाल रक्त को एरिथ्रोसाइट भी कहते हैं। रक्त कण का प्रमुख कोशिका
   है और संख्या में सबसे बड़ी

RBC में केन्द्रक तथा लाइसोसोम नहीं पाया जाता है।

RBC का जीवन काल 120 दिन होता है।

इसका निर्माण अस्थिमज्जा (bone marrow) में होता हैं।

RBC, प्लीहा (Spleen) तथा यकृत में जाकर नष्ट होते हैं। प्लीहा को RBC

   का कब्रिस्तान कहा जाता हैं  

RBC का आकार गोल होता है। RBC का मुख्य कार्य O₂ तथा CO₂ का

   परिवहन करता है।

RBC में में हीमोग्लोबिन नाम का प्रोटीन पाया जाता है और हीमोग्लोबिन  

   (Hb) के ही कारण रक्त का रंग लाल है। होता है है।

   हीमोग्लोबिन में लोहा (Iron) पाया जाता है  

 

Note:- हीमोग्लोबिन के कमी के कारण एनीमिया नामक रोग होता है।

 

2. श्वेत रक्त कोशिका (W.B.C. - White Blood Corpuscle) :-

श्वेत रक्त को ल्यूकोसाइट्स भी कहते हैं।

 इनमें केन्द्रक होता है। इसमें हीमोग्लोबिन नहीं होता है। जिस कारण

   यह सफेद रंग की दिखती है।

WBC का आकार अनियमित होता है। WBC का निर्माण अस्थिमज्जा में

   होता है

इसका जीवनकाल 4 दिन होता है।
WBC हमें संक्रमण (विमारी) से बचाता है अर्थात् रोगों से हमारी रक्षा

   करता इसे शरीर का सिपाही के नाम से भी जाना जाता है।

ये एंटीबॉडी का निर्माण निर्माण करती है जो प्रतिरक्षा तंत्र में भाग लेती

   है।

 

3. प्लेटलेट्स (विम्बाणु): -

Plate lets (बिम्बाणु) इसे थरम्बोसाइट भी कहते हैं।

यह रक्त को थक्का बनाने में मदद करता है अर्थात् यह रक्त के बहाव

   को रोकता है।

यह रंगहीन होता है। इसका जीवनकाल 10 दिन होता है।

डेंगू बीमारी में इसकी संख्या कम हो जाती है।

यह शरीर को शक्ति प्रदान करता है

 

लासिका (Lymph): जब रुधिर केशिकाओं से होकर बहता है तब उसका द्रव भाग (रक्त रस) कुछ भौतिक, रासायनिक या शारीरिक प्रतिक्रियाओं के कारण केशिकाओं की पतली दीवारों से छनकर बाहर जाता है। बाहर निकला हुआ यही रक्त रस लसीका (Lymph) कहलाता है।
लासिका शरीर को संक्रमण से बचाती है तथा शरीर में अतिरिक्त जल को अवशोषित कर लेता है। यह घाव भरने का कार्य करती है।

 

रक्तदाब (Blood Pressure): रुधिर वाहिकाओं के विरुद्ध जो दाब लगता है उसे रक्तदाब कहते है।

 

रक्तदाब दो प्रकार के होते है:

(1) प्रकुंचन दाब (Systolic Pressure) : धमनी के अन्दर रक्त का दाब जब निलय संकुचित (सिकुड़ता) होता है तो उसे प्रकुंचन दाब कहते हैं।

 

(2) अनुशिथिलन दाब (Diastolic Pressure): निलय अनुशिथिलन (फैलता) के दौरान धमनी के अन्दर जो दाब उत्पन्न होता है उसे अनुशिथिलन दाब कहते हैं।

      B. P = Systolic Pressure / Diastolic Pressure

 

एक समान्य मनुष्य का रक्तचाप (B.P) = 80 /120 होता है।

Note:- रक्तचाप मापने वाला यन्त्र: स्कैग्नोमोमैनोमीटर

 

पादप में वहन

जाइलम: पादप तंत्र का एक अवयव है जो जमीन से प्राप्त जल और खनिज लवणों का वहन करता है

फ्लोएमः- पत्तियों द्वारा प्रकाश संश्लेषित उत्पादों को पौधे के अन्य भागों तक वहन करता है।

 

उत्सर्जन( Excretion) :- वह जैव प्रकम जिसमें जीवों में उपापचयी क्रियाओं में जनित हानिकारक नाइट्रोजन युक्त पदार्थों का निष्कासन होता है, उत्सर्जन कहलाता है।
एक कोशिकीय जीव इन अपशिष्ट पदार्थों को शरीर की सतह से जल में विसरित कर देते हैं।

 

 

मानव में उत्सर्जन (Excretion in

उत्सर्जन( Excretion) :- शरीर से अपशिष्ट पदार्थ (खराब पदार्थ) को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। वैसे अंग जो खराब पदार्थ को शरीर से बाहर निकालते हैं उत्सर्जी अंग कहलाते हैं।

 

मानव में प्रमुख उत्सर्जी अंग :

1. फेफड़ा - फेफड़ा CO₂, तथा वाष्पीशील पदार्थों का उत्सर्जन करता है।

 

2. बड़ी आंत- यह अपच भोजन (मल) का उत्सर्जन करता है।

 

3. यकृत - अमोनिया जैसे खतरनाक पदार्थ को यूरिया जैसे-कम खतराक पदार्थ में बदलकर उसके उत्सर्जन में प्रमुख भूमिका निभाती है।

 

4. त्वचा - त्वचा पसीना तथा सीबम (पदार्थ) का उत्सर्जन करता है।

 

5. वृक्क-

यह सबसे प्रमुख उत्सर्जी अंग है।

इसकी संख्या दो होती है।

इसका आकार सेम के बीज के समान होता है।

प्रत्येक वृक्क का भार लगभग 140 gm होता है।

वृक्क पेरिटोनियम नामक झिल्ली में बंद रहती हैवृक्क की इकाई को

   नेफ्रोन कहते हैं।

वृक्क रक्त को छानता है तथा रक्त में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थ (मूत्र)

   को निकालता है, मूत्र में यूरिया, अमोनिया, यूरिक अम्ल पाया जाता है

   जो खतराक पदार्थ होता है, मूत्र बनने के बाद मूत्रवाहिनी से होता हुआ

   मूत्रशय में आ जाता है तथा यहाँ तब तक एकत्र रहता है जब तक

   मूत्रमार्ग से यह निकल नहीं जाता है।

 

वृक्क में रक्त को छाना जाता है इस क्रिया को Dialysis कहते हैं।



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◼ परिवहन क्या है ?

उत्तर :- उपयोगी पदार्थों का शरीर के प्रत्येक कोशिका तक पहुंचाने तथा अनुपयोगी और हानिकारक पदार्थों को कोशिकाओं से निकालकर गंतव्य स्थान तक पहुंचाने की क्रिया को पदार्थ का परिवहन कहते है । 

* मनुष्य का ह्रदय - 

ह्रदय एक अत्यंत कोमल , मांसल रचना है जो वक्षगुहा के मध्य में पसलियों के नीचे तथा दोनों फेफड़ों के बीच होता है । ह्रदय एक केन्द्रीय पंप अंग है जो रक्त पर दबाव बनाकर उसका परिसंचरण पूरे शरीर में करता है ।  

ह्रदय की संरचना -
ह्रदय का आकार तिकोना होता है । इसका चौड़ा भाग आगे की ओर और संकरा भाग पीछे की ओर होता है तथा बाईं ओर झुक रहता है । 

ह्रदय के कार्य - 
ह्रदय शरीर के सभी भागों से अशुद्ध रक्त को ग्रहण करता । फिर उस अशुद्ध रक्त को शुद्ध करने के लिए फेफड़ों में भेज देता है तथा पुनः शुद्ध रक्त को फेफड़ों से ग्रहण करके शरीर के विभिन्न भागों में पंप कर देता है जिससे शरीर में रक्त का परिसंचरण होता है । 

नोट :-
1. मनुष्य के ह्रदय में चार वेश्म होते है जो दायाँ अलिंद , बायाँ अलिंद तथा दायाँ निलय , बायाँ निलय कहलाते है । 

2. दायाँ और बायाँ अलिंद ह्रदय के के चौड़े अग्रभाग में होते है । ये दोनों एक विभाजिका द्वारा एक दूसरे से अलग होते है । इस विभाजिका को अंतराअलिंद भित्ति कहते है । 

3. दायाँ और बायाँ निलय ह्रदय के संकरा पश्चभाग में स्थित होता है । 
ये दोनों अंतरानिलय भित्ति  द्वारा अलग होते है । 

4. दोनों अलिंद की दीवारें पतली होती हैं । जबकि निलय की दीवारें इनके अपेक्षा ज्यादा मोटी होती है ।