Page 100 - प्रकाश

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प्रकाश :- प्रकाश का परावर्तन 

प्रकाश(Light) :- प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है , जो हमें किसी वस्तु को देखने के योग्य बनाता है । 
Note:-
(i) प्रकाश एक विधुत चुंबकिए तरंग है । 
(ii) प्रकाश हमेशा सरल रेखा मे गमन करता है । 

 प्रकाश की किरण(Ray) :- किसी दिशा मे प्रकाश के सरल रेखिए गमन पथ को प्रकाश की किरण कहते है । 

किरणपुंज(
Beam of Rays) :- किसी निश्चित दिशा मे प्रकाश की किरणों के समूह को किरणपुंज कहते है । 


किरणपुंज तीन प्रकार के होते हैं - 
1. समांतर किरणपुंज (Parallel 
Beam of Rays) 
2. अभिसारी किरणपुंज / संसृप्त किरणपुंज (Convergent Beam of Rays)
3. अपसारी किरणपुंज अपसृत किरणपुंज(Divergent Beam of Rays)


1. समांतर किरणपुंज:- ऐसी किरणपुंज जिसमें सभी किरणें परस्पर समांतर होती हैं , उसे समांतर किरणपुंज कहते है । 


2. अभिसारी किरणपुंज:- ऐसी किरणपुंज जिसमें सभी किरणें एक बिन्द पर मिलती है  , उसे अभिसारी किरणपुंज कहते है । 



3. अपसारी किरणपुंज :- ऐसी किरणपुंज जिसमें सभी किरणें एक बिन्द से बिखरती हुई दिखाई देती है  , उसे अपसारी किरणपुंज कहते है । 



छाया (Shadow):- प्रकाश के गमन पथ पर जब अपारदर्शी वस्तु रख दी जाती है तो प्रकाश उस अपारदर्शी वस्तु को पार नहीं कर पता है , इसलिए वहाँ अंधेरा क्षेत्र बन जाता है जिसे छाया कहते है । 
• दर्पण(Mirror) :- किसी पदार्थ के उस टुकरे को दर्पण कहते है जो दो सतहों से घिरा राहत है । जिसमे से एक सतह साफ रहता है और दूसरा पर पॉलिस किया रहता है । 

दर्पण दो प्रकार के होते हैं 
1. समतल दर्पण (Plane Mirror)
2. गोलिए दर्पण (Spherical Mirror)

1. समतल दर्पण :- उस दर्पण को समतल दर्पण कहते है जिसकी दोनों सतहें समतल होती हैं , जिनमे से एक सतह पर पोलिश की हुई रहती है । 



2. गोलिए दर्पण :- गोलिए दर्पण उसको कहते हैं जो किसी खोखला गोल का एक खंड होता है जिसमे नीचे दबी हुई या ऊपर उठी हुई दो सतहों मे से कोई एक साफ रहता है और दूसरी पर पोलिश की हुई रहती है ।   

**

गोलिए दर्पण दो प्रकार के होते है। 
1. अवतल दर्पण (Concave Mirror)
2. उत्तल दर्पण (Convex Mirror)

1. अवतल दर्पण:- ऐसा गोलिए दर्पण जिसमे नीचे दाबी हुई सतह से प्रकाश का परावर्तन होता है , उसे अवतल दर्पण कहते हैं । 

 
2. उत्तल दर्पण :- ऐसा
 गोलिए दर्पण जिसमे ऊपर उठी हुई सतह से प्रकाश का परावर्तन होता है , उसे उत्तल दर्पण कहते हैं ।

प्रकाश का परावर्तन (Reflection of light):- जब  प्रकाश की किरण किस परावर्तक सतह पर पड़ कर उसी माध्यम मे लौट आती है तो इस क्रिया को प्रकाश का परावर्तन कहते है । 

प्रकाश के परावर्तन के नियम :- प्रकाश की किरण किसी सतह पर पड कर जिस नियमों का पालन करते हुए परावर्तित होती है , उन नियमून को प्रकाश के परावर्तन के नियम कहते है ।  

# समतल दर्पण मे प्रकाश का परवर्तन 


1. आपतन बिन्दु :- दर्पण पर स्थित वह बिन्दु जहां आपतित किरण पड़ती है , उसको आपतन बिन्दु कहते हैं । 

2. आपतित किरण :-
प्रकाश की वह किरण जो दर्पण पर आकार पड़ती है , उसको आपतित किरण कहते है । 

3. परावर्तित किरण :-
  प्रकाश की वह किरण जो दर्पण से टकराके वापस लौट रही होती है , उसे परावर्तित किरण कहते है । 

4. अभिलम्ब :-
किसी दर्पण के आपतन बिन्दु पर डाले  गए लंब को उस दर्पण का अभिलम्ब कहते हैं । 

5. आपतन कोण :-
आपतित किरण और अभिलम्ब द्वारा आपतन बिन्दु पर बना कोण आपतन कोण कहलाता है । 
6. परावर्तित कोण :- परावर्तित किरण और अभिलम्ब द्वारा आपतन बिन्दु पर बना कोण परावर्तन कोण कहलाता है ।

# प्रकाश के परावर्तन के नियम 
प्रकाश के परावर्तन के दो नियम होते हैं । 
1. आपतित किरण , परावर्तित किरण और आपतन बिन्दु पर डाले गए अभिलम्ब तीनों एक ही समतल मे हॉपते हैं । 2. आपतन कोण , परावर्तन कोण के बराबर होते हैं । 
अर्थात , ㄥi = ㄥr 

***

प्रतिबिंब ( Image ) क्या है ? 
उत्तर :- किसी बिम्ब विंदु से आती हुई प्रकाश की किरणें परावर्तित या अपवर्तित के बाद जिस बिन्दु पर कटती है या कटती हुई प्रतीत होती है , उसे उस विंदु का प्रतिबिंब कहते है । 

# प्रतिबिंब के प्रकार 
( i ) वास्तविक प्रतिबिंब ( Real Image )
( ii ) काल्पनिक प्रतबिम्ब / आभासी प्रतिबिंब ( Virtual Image )

( i ) वास्तविक प्रतिबिंब :- ऐसा प्रतिबिंब जो परावर्तित  या अपवर्तित किरणों के वास्तविक रूप से कटने से बंता है , उसे वास्तविक प्रतिबिंब कहते है । 



( ii ) काल्पनिक प्रतबिम्ब / आभासी प्रतिबिंब :- ऐसा प्रतिबिंब जो परावर्तित  या अपवर्तित किरणों के अभासी रूप से कटने से बंता है , उसे काल्पनिक प्रतिबिंब कहते है । 




# काल्पनिक और वास्तविक प्रतिबिंब मे अंतर  



काल्पनिक प्रतिबिंब   वास्तविक प्रतिबिंब 
1. यह प्रतिबिंब परावर्तित या अपवर्तित किरणों के आभासी कटान स बंता है । 
2. यह प्रतिबिंब हमेशा सीधा होता है । 
3. इस प्रतिबिंब को पर्दे पर नहीं दिखाया जा सकता है ।
4. यह दर्पण पर पीछे की ओर बंता है ।
5. यह लेंस पर उसक आगे बंता है ।  
1. यह प्रतिबिंब परावर्तित या अपवर्तित किरणों के वास्तविक कटान स बंता है ।
2. यह प्रतिबिंब हमेशा उलट होता है । 
3. इस प्रतिबिंब को पर्दे पर दिखाया जा सकता है ।      
4. यह दर्पण पर आगे की ओर बंता है ।
5. यह लेंस पर उसक पीछे बंता है ।  

• गोलिए दर्पण के कुछ अंग / भाग 
(i) ध्रुव { Pole}
(ii) मुख्य अक्ष { Principal Axis }
(iii) फोकस / नाभिक { Focus }
(iv) वक्रता केंद्र { Centre of curvature }
(v) फोकस दूरी { Focal Length }
(vi) वक्रता त्रिज्या { Radius of Curvature }
(vii) द्वारक { Aperture } 

**  **
(i) ध्रुव { Pole}:- किसी गोलिए दर्पण के परावर्तक सतह के मध्य बिन्दु को उस गोलिए दर्पण के ध्रुव कहते है । 
P ध्रुव है । 


(ii) मुख्य अक्ष { Principal Axis }:- किसी गोलिए दर्पण के ध्रुव और वक्रता केंद्र से होकर जाने वाली रेखा को उस दर्पण का मुख्य अक्ष कहते है । 
PX मुख्य अक्ष है । 

(iii) फोकस / नाभिक { Focus }:- किसी गोलिए दर्पण के मुख्य अक्ष के समांतर आती हुई प्रकाश की किरणें परावर्तन के बाद जिस बिन्दु पर एकत्रित होती है या बिखरती हुई दिखाई देती है , उस बिन्दु को फोकस कहते है । 
F फोकस है । 
फोकस को ' F ' से निरूपित किया जाता है । 
 
(iv) वक्रता केंद्र { Centre of curvature }:- गोलिए दर्पण जिस खोखला गोल का खंड होता है उसके केंद्र को उस गोलिए दर्पण का वक्रता केंद्र कहते है । 
वक्रता केंद्र है । 
वक्रता केंद्र को ' C ' से निरूपित किया जाता है । 

(v) फोकस दूरी { Focal Length }:- किसी गोलिए दर्पण के ध्रुव और फोकस के बीच की दूरी को फोकस दूरी कहते है । 
PF फोकस दूरी है । 
फोकस दूरी को ' f ' से निरूपित किया जाता है । 

(vi) वक्रता त्रिज्या { Radius of Curvature }:- किसी गोलिए दर्पण के ध्रुव और  वक्रता केंद्र के बीच की दूरी को वक्रता त्रिज्या कहते है । 
PC वक्रता त्रिज्या है । 
वक्रता त्रिज्या को r या R से निरूपित किया जाता है । 

(vii) द्वारक { Aperture } :- किसी गोलिए दर्पण के चौड़ाई को उस गोलिए दर्पण का द्वारक कहते है । 

**  *  **
• लेंस / ताल / विक्ष { Lens } क्या है ?
उत्तर:- पारदर्शी माध्यम के उस टुकड़े को लेंस कहते है जो दो सतहों से घिरा रहता है । जिनमे से एक सतह टेढ़ा अवश्य होता है । 
#लेंस दो प्रकार के होते है -
(i) अवतल लेंस { Concave Lens }
(ii)उत्तल लेंस { Convex Lens }

(i) अवतल लेंस:- ऐसा लेंस जिसकी मोटाई बीच मे सबसे कम और किनारों पर सबसे अधिक होती है उसको अवतल लेंस कहते है । 



(ii)उत्तल लेंस:- ऐसा लेंस जिसकी मोटाई बीच मे सबसे अधिक और किनारों पर सबसे कम होती है उसको उत्तल लेंस कहते है । 


**  **  **

उत्तल लेंस को अभासी लेंस क्यों कहा जाता है ? 
उत्तर :- उत्तल लेंस पर पड़ने वाली प्रकाश की किरणें अपवर्तन के बाद एक बिन्दु पर मिलती है । इसलिए उत्तल लेंस को अभासी लेंस कहते है । 



अवतल लेंस को अपसृत लेंस क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :-
अवतल 
 लेंस पर पड़ने वाली प्रकाश की किरणें अपवर्तन के बाद एक बिन्दु से बिखरती हुई दिखाई देती है  । इसलिए अवतल लेंस को अपसृत लेंस कहते है । 


लेंस के भाग / हिस्से 
1. लेंस के मुख्य अक्ष ( Principle Axis of Lens )
2.  प्रकाश केंद्र (Light Centre / Optical Centre )
3. लेंस के फोकस / नाभिक ( Focus of Lens )
4. लेंस का वक्रता केन्द्र ( Focus of lens )
5. लेंस का फोकस दूरी ( Focal length of lens )
6. लेंस का 
वक्रता त्रिज्या ( Radius of Curvature of lens )
7. लेंस का द्वारक ( Aperture of lens )

** ** ** *
1. लेंस के मुख्य अक्ष ( Principle Axis of Lens ):- लेंस के वक्रता केन्द्र से होकर जाने वाली रेखा को लेंस के मुख्य अक्ष कहते है । 


2. प्रकाश केंद्र ( Light Centre / Optical Centre):- किसी लेंस का प्रकाश केंद्र उसके अंदर मुख्य अक्ष पर स्थित वह बिन्दु है जिससे गुजरने पर प्रकाश की किरणे बिना मुड़े अपवर्तित हो जाती है । 


3. लेंस के फोकस / नाभिक ( Focus of Lens ):- लेंस के मुख्य अक्ष के समानतर आती हुई प्रकाश की किरणे अपवर्तन के बाद मुख्य अक्ष के जिस बिन्दु पर मिलती है या जिस बिन्दु से बिखरती हुई दिखाई देती है , उसको लेंस का फोकस कहते है । 
लेंस के फोकस को " F " से निरूपित किया जाता है । 

4. लेंस का वक्रता केन्द्र ( Focus of lens ):- लेंस जिन दो गोले का भाग होता है उनके केंद्रों को लेंस का वक्रता केन्द्र कहते है । 

5. लेंस का फोकस दूरी ( Focal length of lens ):-
लेंस के प्रकाश केंद्र और फोकस के बीच की दूरी को फोकस दूरी कहते है । 

6. लेंस का वक्रता त्रिज्या ( Radius of Curvature of lens ):- लेंस के प्रकाश केंद्र और वक्रता केन्द्र के बीच की दूरी को लेंस का वक्रता त्रिज्या  कहते है ।

7. लेंस का द्वारक ( Aperture of lens ):- किसी लेंस की वृतीय परिधि के व्यास को उस लेंस का द्वारक कहते है । 

** ** ** **
Sign Convention [ चिन्ह परिपार्टी ]
गोलिय दर्पण या लेंस में कभी प्रतिबिंब उसके सामने बनता है तो कभी उसके पीछे । इन परिस्थितियों में जिस परिपार्टी ( विधि ) द्वारा अंतर स्पष्ट किया जाता है उसको चिन्ह परिपार्टी कहते हैं ।  
आजकल निर्देशांक चिन्ह परिपार्टी [ Co - ordinate sign convention ] प्रचलित है । 

निर्देशांक चिन्ह परिपार्टी के अनुसार 
1. वस्तु को दर्पण या लेंस के बाईं ओर रखा जाता है । 
2. वस्तु दूरी ( u ) , प्रतिबिंब दूरी ( v ) तथा फोकस दूरी ( f ) को दर्पण के ध्रुव और लेंस के प्रकाश केंद्र से मापा जाता है । 
3. मुख्य अक्ष के ऊपर की दूरी धनात्मक ( + )और नीचे की दूरी ॠणात्मक ( - )होती है ।
4. ध्रुव और प्रकाश केंद्र से बाईं ओर की दूरी ॠणात्मक ( - ) तथा दाईं ओर की दूरी धनात्मक ( + ) होती है । 

निष्कर्ष 
1. किसी भी दर्पण या लेंस में वस्तु दूरी हमेशा ॠणात्मक ( - ) होता है । 
2. उत्तल लेंस तथा उत्तल दर्पण का फोकस हमेशा धनात्मक होता है । 
3. अवतल लेंस तथा अवतल दर्पण का फोकस हमेशा 
ॠणात्मक ( - ) होता है । 
4. लेंस में जब वास्तविक परतिबिंब बनता है तो प्रतिबिंब दूरी धनात्मक ( + ) होती है और जब काल्पनिक पतिबिंब बनती है तो 
प्रतिबिंब दूरी ॠणात्मक ( - ) होता है । 
5. दर्पण में जब वास्तविक प्रतिबिंब बनता है तो प्रतिबिंब दूरी 
ॠणात्मक ( - ) होता है तथा जब काल्पनिक बनता है तो प्रतिबिंब दूरी धनात्मक ( + ) होता है । 

• आवर्धन(Magnification):- प्रतिबिंब की ऊंचाई तथा बिम्ब की ऊंचाई के अनुपात को आवर्धन कहते हैं ।
       आवर्धन को “
m” से निरूपित किया जाता है ।
                
m = h2/h1
जहां ,
h2 प्रतिबिंब की ऊंचाई और h1 बिम्ब की ऊंचाई

• लेंस के उपयोगों को लिखें :
उत्तर:- लेंस के उपयोग निम्नलिखित हैं ।
(
i) इनका उपयोग प्रकाशिय यंत्र बनाने में किया जाता है ।
जैसे:- सधारण सूक्ष्मदर्शी , संयुक्त सूक्ष्मदर्शी , दूरबीन  
(
ii) इनका उपयोग नेत्र दोष दूर करने के लिए किया जाता है ।
जैसे:- निकट दृष्टि दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस तथा दूर दृष्टि दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस का उपयोग किया जाता है ।

• उत्तल लेंस तथा अवतल लेंस में अंतर स्पष्ट करें :
उत्तर:- उत्तल लेंस तथा अवतल लेंस में अंतर निम्नलिखित हैं ।

उत्तल लेंस

अवतल लेंस

1. यह लेंस बीच में मोटा होता है ।

1. यह लेंस बीच में पतला होता है ।

2. यह लेंस किनारों पर पतला होता है ।

2. यह लेंस किनारों पर मोटा होता है ।

3. यह बीच में ऊपर उठा रहता है ।

3. यह बीच में नीचे दबा रहता है ।

4. इसमें वास्तविक और काल्पनिक दोनों प्रतिबिंब बनता है ।

4. इसमें केवल काल्पनिक प्रतिबिंब बनता है ।

5. इसमें प्रतिबिम्ब कभी वस्तु से बड़ा , कभी छोटा , कभी वस्तु के बराबर बनता है ।

5. इसमें हमेशा वस्तु से छोटा प्रतिबिंब बनता है ।

6. इसमें प्रतिबिंब कभी सीधा तो कभी उल्टा बनता है ।

6. इसमें प्रतिबिंब हमेशा सीधा बनता है ।

• लेंस की क्षमता से क्या समझते हैं ?
उत्तर:-
मीटर में मापी गई किसी लेंस की फोकस दूरी के व्युत्क्रम को लेंस की क्षमता कहते हैं ।
       लेंस की क्षमता को “
P” से निरूपित किया जाता है ।
 
P = 1/f  {f फोकस दूरी को कहते है जो मीटर में मापी गई होती है }
   लेंस की क्षमता का
SI मात्रक डायोपटर (Dioptre) है ।
नोट:-
(
i) किसी लेंस की फोकस दूरी 1m है तो उसकी क्षमता 1dioptre है।
(
ii) उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक (+) और अवतल लेंस की क्षमता ॠणात्मक (-) होती है ।
• अनुबद्ध फोकस:- किसी उत्तल लेंस या अवतल दर्पण के मुख्य अक्ष पर स्थित दो बिंदुओं को अनुबद्ध फोकस कहते हैं जब इनमें से किसी एक बिन्दु पर वस्तु को रखने पर प्रतिबिंब दूसरे बिन्दु पर बनता हो ।


• दर्शन कोण:- किसी वस्तु द्वारा आँख पर बनाए गए कोण को दर्शन कोण कहते हैं ।
  किसी वस्तु का आकार दर्शन कोण के समानुपाती होता है ।

• विचलन का कोण:- जब प्रकाश की किरणें एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है तो
उसका असल मार्ग से जितना कोणिए हटाव होता है उसको विचलन का कोण कहते हैं 
 

• प्रकाशिक सघन माध्यम:- दो माध्यमों की तुलना करते समय अधिक अपवर्तनांक वाला माध्यम दूसरे की अपेक्षा प्रकाशिक सघन होता है ।
उदहारण:- जब प्रकाश की किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाती है तो उसकी चाल धीमी हो जाती है तथा अभिलंब की ओर झुक जाती है ।

• प्रकाशिक विरल माध्यम:- दो माध्यमों की तुलना करते समय कम अपवर्तनांक वाला माध्यम प्रकाशिक विरल माध्यम है ।
उदहारण:- जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो इसकी चाल बढ़ जाती है तथा ये अभिलंब से दूर हट जाती है ।

• अपवर्तनांक(Refractive Index):- किसी एक माध्यम से किसी दूसरे माध्यम में जाती हुई प्रकाश की किरण के लिए आपतन के कोण के sin तथा अपवर्तन के कोण के sin के अनुपात को प्रथम माध्यम की अपेक्षा दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहते हैं । 


दर्शन कोण:- किसी वस्तु द्वारा आँख पर बनाए गए कोण को दर्शन कोण कहते हैं ।
   किसी वस्तु का आकार दर्शन कोण के समानुपाती होता है ।
विचलन का कोण:- जब प्रकाश की किरणें एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है तो उसका असल मार्ग से जितना कोणिए हटाव होता है उसको विचलन का कोण कहते हैं ।
 
 


अपवर्तनांक(
Refractive Index):- किसी एक माध्यम से किसी दूसरे माध्यम में जाती हुई प्रकाश की किरण के लिए आपतन के कोण के sin तथा अपवर्तन के कोण के sin के अनुपात को प्रथम माध्यम की अपेक्षा दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहते हैं ।

या

किसी एक माध्यम में प्रकाश की चाल तथा किसी दूसरे माध्यम में प्रकाश की चाल के अनुपात को प्रथम माध्यम की अपेक्षा दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहते हैं ।

नोट:-
(
i) प्रयोग से पाया गया है की प्रकाश की किरण के रंग को बदलने से अपवर्तनांक बदल जाता है ।
(
ii) यदि प्रथम मध्यम न दिया हो तो वहाँ वायु माना जाता है ।
(
iii) किसी एक माध्यम को बदल देने से अपवर्तनांक बदल जाता है ।
(
vi) वायु में प्रकाश की चाल = 300000000m/sec. या 300000km/sec
(
v)  जल में प्रकाश की चाल = 225000000m/sec. या 225000km/sec
(
vi) कांच में प्रकाश की चाल = 200000000m/sec. या 200000km/sec

कुछ पदार्थ के अपवर्तनांक वायु/निर्वात के सापेक्ष

वायु का अपवर्तनांक = 0.0003
कांच का अपवर्तनांक = 1.5
जल का अपवर्तनांक = 1.33
हीरा का अपवर्तनांक = 2.42

•  प्रकाश- अपवर्तन के कुछ उदाहरण :-

1. प्रकाश के अपवर्तन के कारण स्विमिंग पूल का तल वास्तविक स्थिति से विस्थापित हुआ प्रतीत होता है ।
2. पानी में आंशिक रूप से डूबी हुई पेंसिल वायु तथा पानी के अन्तरपृष्ठ पर टेढ़ी प्रतीत होती है ।
3. काँच के गिलास में पड़े नीबू वास्तविक आकार से बड़े प्रतीत होते हैं । 
4. कागज पर लिखे शब्द गिलास स्लैब से देखने पर ऊपर उठे हुए प्रतीत होते हैं ।

• क्रांतिक कोण:- किसी संघन माध्यम से किसी विरल माध्यम में जाती हुई प्रकाश की किरण के लिए वह आपतन का कोण जिसका संगत अपवर्तनांक का कोण 90 डिग्री का होता है उसको क्रांतिक कोण कहते है ।

• अवतल दर्पण और उत्तल दर्पण में अंतर स्पष्ट करें :
उत्तर:- अवतल दर्पण और उत्तल दर्पण में अंतर निम्नलिखित हैं ।

अवतल दर्पण

उत्तल दर्पण

1. इसमें प्रवर्तक सतह नीचे दबी रहती है ।

1. इसमें प्रवर्तक सतह ऊपर की ओर उठी रहती है ।

2. इसमें ऊपर उठी हुई भाग पर पॉलिश किया रहता है ।

2. इसमें नीचे दबी हुई भाग पर पॉलिश किया रहता है ।

3. इसमें वास्तविक और काल्पनिक प्रतिबिंब दोनों बनते हैं ।

3. इसमें केवल काल्पनिक प्रतिबिंब बनते हैं ।

4. इसमें प्रतिबिंब कभी वस्तु से बड़ा , कभी छोटा , कभी वस्तु के बराबर बनता है ।

4. इसमें प्रतिबिंब हमेशा छोटा बनता है ।

5. इसमें प्रतिबिंब कभी उल्टा तो कभी सीधा बनता है ।

5. इसमें प्रतिबिंब हमेशा सीधा बनता है ।

• अवतल दर्पण के उपयोगों को लिखें :
उत्तर:- अवतल दर्पण के उपयोग निम्नलिखित हैं ।
(
i) इसका उपयोग सोलर कुकर में किया जाता है ।
(
ii) इसका उपयोग रोगियों के कान , नाक , गले की बीमारी की जांच करने मे किया जाता है ।
(
iii) इसका उपयोग हजामती दर्पण के रूप में किया जाता है ।
(
iv) इसका उपयोग वाहनों के अग्रद्वीप और सर्चलाइट में किया जाता है ।
(
v) इसका उपयोग परावर्तक दूरबीन में किया जाता है ।

• उत्तल दर्पण के उपयोगों को लिखें :
उत्तर:- उत्तल दर्पण के उपयोग निम्नलिखित हैं ।
(
i) इसका उपयोग वाहनों में साइड मिरर के रूप में किया जाता है ।
(
ii) इसका उपयोग विद्धुत बल्ब के परावर्तक सतह के रूप में किया जाता है ।
(
iii) इसका उपयोग प्रदर्शन कक्ष में छोटा प्रतिबिंब बनाने के लिए किया जाता है ।

• समतल दर्पण के उपयोगों को लिखें :
उत्तर:- समतल दर्पण के उपयोग निम्नलिखित हैं ।
(
i) इसका उपयोग ऊपरी दर्शक में किया जाता है ।
(
ii) इसका उपयोग बहुरूप दर्शक मे किया जाता है ।
(
iii) इसका उपयोग अनेक चित्र बनाने में किया जाता है ।
(
iv) इसका उपयोग व्यस्त मार्ग पर अधिक मोड वाले स्थान पर दूसरी ओर की वाहनों को देखने के लिए किया जाता है ।
(
v
) इसका उपयोग सैलून में पीछे के बाल देखने में किया जाता है ।

• समतल दर्पण द्वारा बनें प्रतिबिंब की विशेषाएं:-

1. प्रतिबिंब आभासी एवं सीधा होता है ।
2. प्रतिबिंब का आकार वस्तु के आकार के बराबर होता है ।
3. प्रतिबिंब दर्पण के उतने पीछे बनता है जितनी वस्तु की दर्पण से दूरी होती है ।
4. प्रतिबिंब पार्श्व परिवर्तित होता है ।

• पार्श्व परिवर्तन :- इसमें वस्तु का दायां भाग बायां प्रतीत होता है और बायां भाग दायां ।
• पार्श्व उत्क्रमण:-  जब हम अपना प्रतिबिंब समतल दर्पण में देखते हैं तो हमारा दायाँ हाथ प्रतिबिंब का बायाँ हाथ दिखाई पड़ता है तथा हमारा बायाँ हाथ प्रतिबिंब का दायाँ हाथ दिखाई पड़ता है इस प्रकार वस्तु के प्रतिबिंब में पार्श्व बदल जाते हैं । इस घटना को पार्श्व उत्क्रमण कहते हैं ।

कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न व उत्तर
Q1. वाहनों में उतल दर्पण ही क्यों लगाया जाता हैं ?
उत्तर:- क्योकि उतल दर्पण सदैव सीधा प्रतिबिम्ब बनाते है। इनका दृष्टि क्षेत्र बहुत अधिक अर्थात लंबी दूरी के भी वस्तु का वास्तविक प्रतिबिम्ब बनाते हैं । क्योकि ये बाहर की ओर वक्रित होते हैं ।

Q2. प्रकाश के अपवर्तन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:- जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं तो यह अपने मार्ग से विचलीत हो जाती हैं। प्रकाश के किरण को अपने मार्ग से विचलीत हो जाना प्रकाश का अपवर्तन कहलाता हैं ।

Q3. अपवर्तनांक किसे कहते हैं ?
उत्तर:- जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं तो यह अपने मार्ग से विचलीत हो जाती हैं। ये विचलन माध्यम और उस माध्यम में प्रकाश की चाल पर निर्भर करता हैं । अतः अपवर्तनांक माध्यमों में प्रकाश की चालों का अनुपात होता है।

Q4. जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं तो किस प्रकार मुडती है ?
उत्तर:- जब प्रकाश की किरण एक माध्यम (विरल) से दूसरे माध्यम (सघन) मे जाती हैं तो यह अभिलंब की ओर मुड जाती हैं । जब यही प्रकाश की किरण सघन से विरल की ओर जाती हैं तो अभिलंब से दूर भागती हैं।

Q5. स्नैल का नियम लिखिए ।

उत्तर:- जब प्रकाश की किरण किन्हीं दो माध्यमों के सीमा तल पर तिरछी आपतित होती हैं तो आपतन कोण (i) की ज्या (sin) अपवर्तन कोण की ज्या (sin) का अनुपात एक नियतांक होता हैं । इस नियतांक को दूसरे माध्यम का पहले माध्यम के सापेक्ष अपवर्तनांक कहते हैं । इस नियम को स्नैल का नियम भी कहते है।

Q6. प्रकाश के अपवर्तन के नियम लिखिए।
उत्तर:-  प्रकाश के अपवर्तन के दो नियम हैं ।
आपतित किरण
, अपवर्तित किरण तथा आपतन बिन्दु पर अभिलंब तीनों एक ही तल में होते हैं ।

जब प्रकाश की किरण किन्हीं दो माध्यमों के सीमा तल पर तिरछी आपतित होती हैं तो आपतन कोण (i) की ज्या (sin) तथा अपवर्तन कोण (r) की ज्या (sin) का अनुपात एक नियतांक होता हैं ।

Q7.  लेंस की क्षमता क्या हैं ? इसका SI मात्रक क्या है ?
उत्तर:- किसी लेंस द्वारा प्रकाश किरणों को अभिसरण या अपसरण करने की मात्रा (डिग्री) को उसकी क्षमता कहते है। यह उस लेंस के फोकस दूरी के व्युत्क्रम के बराबर होता हैं। इसका SI मात्रक डाइऑप्टर (D) होता हैं।
लेंस की क्षमता को
P द्वारा व्यक्त करते हैं।


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The  End