Page 172 - कक्षा 10 जीव विज्ञान अध्याय नियंत्रण और समन्वय नोट्स


अध्याय - नियंत्रण और समन्वय

परिचय:- सभी सजीव अपने पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप अनुक्रिया करते हैं। पर्यावरण में हो रहे ये परिवर्तन जिसके अनुरूप सजीव अनुक्रिया करते हैंउद्दीपन (Stimulus) कहलाता है। जैसे कि प्रकाशऊष्माठंडाध्वनिसुगंधस्पर्श आदि ।

उदाहरण :-

(i) चीटी काटने पर तुरंत काटे हुए भाग पर हाथ चला जाना

(ii) सांप को देखने पर अचानक छलांग मारना

जैव कार्यों के सफल संचालन हेतु सभी जीवों के अंगों एवं अंगतंत्रों का समन्वय (ताल मेल) तथा नियंत्रण (Control) जरूरी है।


पौधे एवं जन्तु अलग- अलग प्रकार से उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करते हैं।

 

जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय

 

संसार के सभी जीव अपने आस-पास होने वाले परिवर्तनों के प्रति-अनुक्रिया करते है। पर्यावरण में प्रत्येक परिवर्तन की अनुक्रिया से एक समुचित गति उत्पन्न होती है। कोई भी गति उस घटना पर निर्भर करती है जो उसे प्रेरित करती है।
जैसे- हम गरम वस्तु को स्पर्श करते हैं तो हमारा हाथ जलने लगता है और हम तुरंत इसके प्रति अनुक्रिया (
respond) करते है

   जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय निम्नांकित दो प्रकार से होते हैं:

 

1. तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय (Nervous control and coordination) :-

शरीर को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी व उसके अनुसार प्रतिक्रिया करने के लिए तंत्रिका तंत्र की आवश्यकता होती है। उच्च श्रेणी के जंतुओं में ऐसी तंत्रिकाएँ मिलकर एक तंत्र का निर्माण करती हैं जिसे तंत्रिका तंत्र ( nervous system) कहते हैं। तन्त्रिका तंत्र की क्रियाएँ तीव्र होती है

 

2. रासायनिक नियंत्रण एवं समन्वय (Chemical control and coordination) :-

जीवो में शारीरिक क्रियाओ का नियंत्रण तथा का नियंत्रण तथा समन्वय तंत्रिका तंत्र के अतिरिक्त कुछ विशिष्ट यौगिको (रसायन) के द्वारा होता हैजिसे हॉर्मोन कहते है। जो अंतःस्रावी ग्रंथियों (endocrine glands) द्वारा निकलता हैं

Note:- पौधों में नियंत्रण एवं समन्वय केवल रासायनिक होता हैतंत्रिकीय नहीं

 

1. तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय (Nervous control and coordination) :-

तंत्रिका तंत्र (nervous system):- मानव शरीर का वह तंत्र जो सोचनेसमझने तथा किसी चीज को याद रखने के साथ ही शरीर के विभिन्न अंगों के कार्यों में सामंजस्य तथा संतुलन स्थापित करने का कार्य करता हैतंत्रिका तंत्र कहलाता है। तंत्रिका तंत्रतंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरॉन के एक संगठित
जाल का बना होता है और यह सूचनाओं को विद्युत आवेग के द्वारा शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक ले जाता है।

 

ग्राही (Receptor): तंत्रिका कोशिकाओं के विशिष्ट सिरे जो पर्यावरण से सभी सूचनाओं का पता लगाते हैं ग्राही कहलाते हैं।


ग्राहियों के प्रकार (
Types of Receptors): ग्राही निम्न प्रकार के होते हैं:

(i) प्रकाश ग्राही (Photo receptor) ----> दृष्टि के लिए (आँख)

(ii) श्रावण ग्राही (Phono receptor)----> सुनने के लिए (कान)

(iii) रस संवेदी ग्राही (Gustatory receptor) ---> स्वाद के लिए (जीभ)

(iv) घ्राण ग्राही (Olfactory receptor) ---> सूंघने के लिए (नाक)

(v) स्पर्श ग्राही (Thermo receptor) ---> ऊष्मा को महसूस करने के लिए (त्वचा)

ये सभी ग्राही हमारे ज्ञानेन्द्रियों (Sense organs) में स्थित होते हैं।

 

तंत्रिका ऊतक (Norvous Tissues): तंत्रिका उत्तक तंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरॉन के इक संगठित जाल का बना हुआ होता है और यह सूचनाओं के विद्युत आवेग के द्वारा शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक ले जाता है।

 

तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन):- यह तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।

तंत्रिका कोशिका के भाग (The parts of norvous cells) :

(i) कोशिका काय (Cell Body): प्रत्येक तंत्रिका कोशिका में एक तारे जैसी रचना होती हैकोशिका काय कहते हैं। कोशिका काय में कोशिका द्रव्य तथा एक बड़ा न्यूक्लियस होता है।

 

(ii) द्रुमिका (Dendrites): कोशिका काय से अनेक पतले तन्तु निकले होते है उन्हें डेन्ड्राइट्स कहते है। डेंड्राईट्स संवेदनाओ को ग्रहण कर उन्हें कोशिका काय में भेजता है। जहाँ ये संवेदनाए (signal) विधुत आवेग (electrical signal) में परिवर्तित हो कर एक्सोन के द्वारा कोशिका के अंतिम सिरे पहुँच जाती है।

 

(iii) तंत्रिकाक्ष (Axon): तंत्रिकाक्ष एक लंबीपूंछ जैसी संरचना होती है जो कोशिका काय को कोशिका के अंतिम सिरे को जोड़ती हैकोशिका काय से कोशिका के अंतिम सिरे तक संवेदनाए (signal) विधुत आवेग (electrical signal) से संचारित हो ती है।

 

तंत्रिकाओं द्वारा सूचनाओं का संचरण (propagation of informations through nerves):

सभी सूचनाएँ जो हमारे मस्तिष्क तक पहुँचाती हैं ये सूचनाएँ एक तंत्रिका कोशिका के द्रुमिका सिरे द्वारा उपार्जित (aquaired) की जाती हैऔर एक रासायनिक क्रिया द्वारा एक विद्युत आवेग पैदा करती हैं। यह आवेग दुमिका से कोशिका काय तक जाता है फिर तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन) में होता हुआ इसके अंतिम सिरे तक पहुँच जाता है। एक्सॉन के अंत में खाली जगह
होता है जिसे सिनेप्स (सिनेष्टिक दरार) कहते है
जिसमे सोडियम (Na) भरा होता है यहाँ विधुत आवेग रासायनिक संकेत में बदल जाता है फिर रासायनि संकेत से दूसरे कोशिका में विधुत आवेग में परिवर्तन किया जाता है ताकि यह आगे संचारित हो सके। इस प्रकार सूचनाएं एक जगह से दूसरी जगह संचारित हो जाती हैं।

सिनेप्स (सिनेटिक दरार): दो तंत्रिका कोशिकाओं के बीच में एक रिक्त स्थान पाया जाता है इसे सिनेप्स (सिनेटिक दरार) कहते हैं। जिसमे सोडियम (Na) भरा होता है यहाँ विधुत आवेग रासायनिक संकेत में बदल जाता है फिर रासायनि संकेत से दूसरे कोशिका में विधुत आवेग में परिवर्तन किया जाता है।
Note:- गर्मी के दिनों में शरीर से पसीना निकलता है तो साथ में सोडियम भी निकल जाता है जिसके कारन सुचना आगे नहीं पहुँच पाता और मनुष्य का शरीर मष्तिष्क द्वारा नियंत्रित नहीं हो पाता है जिसके कारन शरीर गिर जाता है जिसे फिट आना कहते है

 

तंत्रिका तंत्र (Nervous System के भागः

केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System ) CNS:-  यह तंत्रिका तंत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है।

यह पूरे शरीर को नियंत्रित करने का कार्य करता है। इसके अन्तर्गत मस्तिष्क और मेरुरज्जु आते हैं।

 

मानव मस्तिष्क

मानव मस्तिष्क (Human Brain): मानव मस्तिष्क तंत्रिका कोशिकाओं से बना तंत्रिका तंत्र (nervous system) का एक बहुत बड़ा भाग है। जो मेरुरज्जु के साथ मिलकर केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का मिर्माण करता है।

Note:-

◾ मस्तिष्क (Brain) का वजन 1350-1400gm

◾ मस्तिष्क क्रेनियम नामक हड्डियों द्वारा सुरक्षित रहता हैं।

◾ इन हड्डियों के अन्दर मस्तिष्क मेनिनजेज (meninges) नामक झिल्ली से ढका रहता है। इसके अंदर एक तरल पदार्थ भरा रहता है जिसे सेरिब्रो स्पाइनल फ्लूड (Cerebro Spinal Fluid) कहते हैं। यह मस्तिष्क से मेरुरज्जु तक भरा रहता है । यह मस्तिष्क को आंतरिक अघात से सुरक्षा प्रदान करता है।  

◾ मानव का मस्तिष्क तंत्रिका कोशिका का बना होता है तंत्रिका कोशिका में पून: निर्माण की क्षमता अर्थात नयी कोशिका बनने की क्षमता सबसे कम होती है। क्योंकि इसमें सैन्ट्रोसोम (कोशिका विभाजन में मदद करता है) नहीं पाया जाता है।

 

मस्तिष्क के भा और उनके कार्य (The parts of Brain and their Functions)


1. अग्र मस्तिष्क (Fore Brain): यह सोंचने वाला मुख्य भाग है। इसमें विभिन्न ग्राहियों से संवेदी आवेग प्राप्त करने के क्षेत्र होते हैं। इसमें सुननेदेखने और सूँघने के लिए विशेष भाग होते हैं। यह ऐच्छिक पेशियों के गति को नियंत्रित करता है। इसमें भूख से संबंधित केन्द्र है।


इसे तीन भागो में बाँटा गया है :-

(i) सेरीब्रम (cerebrum) / प्रमस्तिष्क :- यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा तथा विकसित भाग है। यह कुल मस्तिष्क का 2/3 भाग (66% भाग) हैइसका मुख्य कार्य बुद्धि और चतुराई का केंद्र होता है। इसमे सोचने समझने की शक्ति घृणाकार्य करने की प्रेरणानई नई चीज़ो को सीखनाभयहासकष्टइत्यादि जैसी क्रियाओं का नियंत्रण इसके द्वारा होता है।

Note :- जिस व्यक्ति में सेरीब्रम औसत से छोटा या कम विकसित होता है वह व्यक्ति मन्द बुद्धि का होता है।

 

(ii) थैलेमस (Thalamus): यह ठंडगर्मीदर्द को बताता है अर्थात् यह बाहरी वातावरण का ज्ञान कराता

 

C. हाइपोथैलेमस (Hypothalamus):- यह पीयूष ग्रंथि के समीप पाया जाता है।

यह आंत: ग्रन्थि से होने वाले स्राव (बहाव) को नियंत्रित करता है। यह शरीर के अंदर रक्त चापतापमानभूख प्यासप्रेम घृणागुस्सानींद को नियंत्रित(Control) करता है। यह आंतरिक तापमान को नियंत्रण करता है।

 

Note:- हापोथैलेमस को ताप नियंत्रक ग्रंथि कहा जाता है। जब शरीर के अंदर का तापमान बढ़ता है तो यह पसीना निकालने का आदेश देता है। हाइथोथैलमस को Emotion centre भी कहा जाता है।

 

2. मध्य मस्तिष्क (Mid Brain): यह शरीर के सभी अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है।

इसे दो भागो में बाँटा गया है:-

(i) कारपोरा (corpora):- यह देखने तथा सुनने की क्रिया को नियंत्रित करता है।

 

(ii) सेरिब्रल पेंडिकल (cerebral peduncles) :-  यह मस्तिष्क(Brain) को मेरुरज्जु (Spinal Cord) से जोड़ता है।

 

3. पश्च मस्तिष्क (Hind Brain): यह भी अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है। सभी अनैच्छिक क्रियाएँ जैसे रक्तदाब , लार आना  तथा मन पश्चमस्तिष्क स्थित मेडुला द्वारा नियंत्रित होती हैं।

इसे दो भागो में बाँटा गया है:-

(i) सेरीबेलम / अनुमस्तिष्क (cerebellum):- यह मस्तिष्क(Brain) का दूसरा सबसे बड़ा भाग होता है। यह संतुलन बनाने तथा एच्छिक मांसपेशियाओं पर नियंत्रण रखता है।

 

(ii) मेडुला आब्लानगेट (medulla oblongata):- यह मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है। यह उपापचयहृदय - धड़कनआहार नाल में पाचन तथा क्रमानुकुचन को नियंत्रित करता है।

 

Note:-
पॉन्स (Pons): यह भी पश्चमस्तिष्क में उपस्थित होता है जो श्वसन क्रिया के नियमित और नियंत्रित करने में भाग लेता है।

 

मेरुरज्जु (Spinal Cord ):- मेरुरज्जु तंत्रिका रेशों का एक बेलनाकार बण्डल है जिसके उत्तक मेरुदंड (रीढ़ के हड्डी) में अवस्थित होता हैमेरुरज्जु मस्तिष्क से लेकर कोक्किक्स (Coccyx) तक गुजरते हैं। यह शरीर के सभी भागों को तंत्रिकाओं से जोड़ता है और मस्तिष्क के साथ मिलकर केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का निर्माण करता है। इसे द्वितीय मस्तिष्क (Second Brain) भी कहते हैं। यह मस्तिष्क जाने वाले उद्दीपनों (Signal) को नियंत्रित करता है अर्थात् यह Signal का संवहन करता है। मेरूरज्जु प्रतिवर्ति (Reflex Action) को नियंत्रित करता है।

 

Nore :- वैसी क्रिया जो अतिशीघ्र तथा अनैच्छीक रूप (बिना इच्छा) से होती हैउसे प्रतिवर्ति क्रिया कहते हैं। जैसे-छींक आनापलक झपकनाजमाई लेनालार का टपकनागर्म वस्तु पर हाथ पड़ने पर अचानक हटा लेना। मेरूरज्जु से 31 जोड़ी तत्रिकाएँ निकली होती है जबकि मस्तिष्क से 12 जोड़ी तंत्रिकाएँ निकली होती है।


परिधीय तंत्रिका तंत्र (
Peripheral Nervous System) PNS: ये मस्तिष्क से निकलने वाली 12 जोड़ी तथा Spinal Cord से निकलने वाली 31 जोड़ी तंत्रिकाओं से मिलकर बना होता है।


इसे दो भागो में बांटा जा सकता है

1. स्वायत / स्वतंत्र तंत्रिका तंत्र (autonomic nervous system)

2. ऐच्छिक तंत्रिका तंत्र (Valuntary Nervous System)

 

1. स्वायत / स्वतंत्र तंत्रिका तंत्र (autonomic nervous system): -

यह मस्तिष्क तथा Spinal Cord से निकलने वाली तंत्रिकाओं में से कुछ तंत्रिकाओं से मिलकर बनता है इसका मुख्य रूप से दो कार्य है
a. अनुकम्पीय क्रिया

b. परानुकम्पीय क्रिया

aअनुकम्पीय क्रिया :- इस क्रिया के अंतर्गत हमारा शरीर अचानक अनियंत्रित (Disbalance) हो जाता है जिससे निम्नलिखित घटना होती है।

◾ हृदय गति का तेज होना।

◾ लार ग्रंथि से लार का कम बनना

◾ आँखों का फैल जाना

◾ रोंगटे खड़े हो जाना

◾ सीना अधिक आना

◾ पैर थरथराने लगना

 

b. परानुकम्पी क्रियाः- जब अनुकम्पीय क्रिया ठीक (Normal) हो जाये तो उसे परानुकम्पी क्रिया कहते है

 

2. ऐच्छिक तंत्रिका तंत्र (Valuntary Nervous System):-

यह दो प्रकार की होती है

a. संवेदी तंत्रिका (Sensory Nerves):-  यह शरीर से से आवेग (Signal) को मस्तिष्क तक ले जाती है।


b. प्रेरक तंत्रिकाएं (Motor nerves):-  यह आवेग (Signal) को मस्तिष्क से शरीर तक ले जाती है।

 

अनुक्रिया: सभी सजीव अपने पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप क्रिया करते हैअनुक्रिया कहलाते है।

यह तीन प्रकार की होती है

 

1. प्रतिवर्ती क्रिया : किसी उद्दीपन (Signal) के प्रतिमस्तिष्क के हस्तक्षेप के बिनाअचानक अनुक्रियाप्रतिवर्ती क्रिया कहलाती है।

ये क्रियाएँ स्वतः होने वाली क्रियाएँ है जो जीव की इच्छा  के बिना ही होती है।

उदाहरण:

(i) किसी गर्म वस्तु को छूने से जलने पर तुरंत हाथ हटा लेना।

(ii) खाना देखकर मुँह में पानी का आ जाना

(iii) सुई चुभाने पर हाथ का हट जाना आदि

सभी प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जू के द्वारा नियंत्रित होती है।

 

प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियंत्रण: सभी प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जू के द्वारा नियंत्रित होती है।

 

2. ऐच्छिक क्रियाएँ: वे सभी क्रियाएँ जिस पर हमारा नियंत्रण होता हैऐच्छिक क्रियाएँ कहलाती हैं।

जैसे- बोलनाचलनालिखना आदि।

 

ऐच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण: ऐच्छिक क्रियाएँ हमारी इच्छा और सोंचने से होती है इसलिए इसका नियंत्रण हमारे सोचने वाला भाग अग्र-मस्तिष्क के द्वारा होता है।

 

3. अनैच्छिक क्रियाएँ: वे सभी क्रियाएँ जो स्वतः होती रहती है जिनपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है। अनैच्छिक क्रियाएँ कहलाती है।

जैसे:- हृदय का धड़कनासाँस का लेनाभोजन का पचना आदि।

 

अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रणः अनैच्छिक क्रियाएँ मध्य-मस्तिष्क व पश्च-मस्तिष्क के द्वारा नियंत्रित होती हैं।

 

प्रतिवर्ती चाप: प्रतिवर्ती क्रियाओं के आगम संकेतों का पता लगाने और निर्गम क्रियाओं के करने के लिए संवेदी तंत्रिका कोशिका और प्रेरित तंत्रिका कोशिका मेरूरज्जु के साथ मिलकर एक पथ का निर्माण करती है जिसे प्रतिवर्ती चाप कहते है

पौधों में नियंत्रण एवं समन्वय (Control and Coordination in Plants):-
पौधों में नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य पादप हार्मोस जिसे फाइटोहार्मोंस भी कहा जाता है के द्वारा होता है। विविध पादप हॉर्मोन वृद्धिविकास तथा पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया के समन्वय में सहायता करते हैं।


पादप दो भिन्न प्रकार की गतियाँ दर्शाते हैं -

(1) वृद्धि से मुक्त गति- ये गतियाँ वृद्धि पर निर्भर नहीं करती है। इस गति में पेड़ पौधे का शरीर नहीं बढ़ता अर्थात पेड़ पौधे वृद्धि नहीं दर्शाते जैसे: छुई मुई के पौधे का स्पर्श से सिकुड़ जाना ।

 

छुई मुई के पौधे में गति: जब हम छुई मुई के पौधों को स्पर्श करते हैं तो अनुक्रिया के फलस्वरूप अपने पत्तियों में गति करता है और सिकुड़ जाता है। यह गति वृद्धि से सम्बंधित नहीं है।

 

पादपों में उद्दीपन के प्रति तत्काल अनुक्रिया:-

पादप स्पर्श की सूचना को एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक संचारित करने के लिए वैद्युत-रसायन साधन का उपयोग करते हैं लेकिन जंतुओं की तरह पादप में सूचनाओं के चालन के लिए कोई विशिष्ट ऊतक नहीं होते हैं। वे जल की मात्रा में परिवर्तन करके अपनी आकृति बदल लेती हैंपरिणामस्वरूप फूलने या सिकुड़ने में उनका आकार बदल जाता है।

 

(2) वृद्धि पर आश्रित गति:- पौधों में होने वाली ये गतियाँ वे गतियाँ होती है जो पौधों के कायिक भाग (जड़तनापत्ती) में गतियों को दर्शाती है।
जैसे: प्रतान की गति
पौधे का प्रकाश की ओर गति और जड़ों का जल की ओर गति आदि ।
 
वृद्धि पर आश्रित गति निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

 

(i) प्रकाश अनुवर्तन :- इसमें पौधे के अंग की गति प्रकाश की ओर होती है यह तने के शीर्ष भाग या पतियों में स्पष्ट दिखाई देता है

चित्र प्रकाश की दिशा में पादप की अनुक्रिया

 

(ii) गुरुत्व अनुवर्तन : इसमें पौधे के अंग गुरुत्वाकर्षण (पृथ्वी के की दिशा में गति करती है यह पौधों की जड़ों में स्पष्ट दिखाई देता है।

पौधों में गुरुत्वानुवर्तन

 

(iii) जल अनुवर्तन :- पौधों के अंग जल की ओर गति करती है, उसे  जल अनुवर्तन कहते हैं।

जैसे: जड़ो का जल की ओर गति

(iv) रसायनिक अनुवर्तन:- यह गति रसायनिक उद्दीपनों के द्वारा होता हैजैसे: पराग नली का अंडाशय की ओर गति

2. रासायनिक नियंत्रण एवं समन्वय (Chemical control and coordination):-

जंतुओं में रासायनिक नियंत्रण एवं समन्वयः जंतुओं में विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वय तंत्रिका तंत्र के अतिरिक्त कुछ विशिष्ट रासायनिक यौगिकों के द्वारा भी होता है। ये रासायनिक यौगिक हॉर्मोन (hormone) कहलाते हैं।

हार्मोन्स (Harmones):- यह रासायनिक कार्बनिक यौनिक है जो शरीर के अलग अलग जगह से स्त्रावित्त हो कर जंतुओं या पादपों में नियंत्रण और समन्वय का कार्य करते हैं, हार्मोन्स कहलाते हैं।

 

स्रावित होने वाले हार्मोन का समय और मात्रा का नियंत्रणः स्रावित होने वाले हार्मोन का समय और मात्रा का नियंत्राण पुनर्भरण क्रियाविधि से किया जाता है। उदाहरण के लिएयदि रुधिर में शर्करा स्तर बढ़ जाता है तो इसे अगन्याशय की कोशिका संसूचित कर लेती है तथा इसकी अनुक्रिया में अधिक इंसुलिन स्रावित करती है। जब रुधिर में स्तर कम हो जाता है तो इंसुलिन का स्रावण कम हो जाता है।

 

जंतुओं में हार्मोन का बनना :

जंतुओं में हार्मोन अंतःस्रावी ग्रंथियों में बनता है ।

 

ग्रंथि (Gland):- यह एक थैले की आकार की रचना होती है जिसमें से इंजाइम या हार्मोन निकलते हैं मनुष्य में अथवा जंतुओं में ग्रंथियां दो प्रकार की होती हैं। जो निम्न हैं-

(1) अंत: स्रावी ग्रंथियाँ

(2) बाह्य-स्रावी ग्रंथियाँ

 

(1) अंत: स्रावी ग्रंथियाँ: इससे हार्मोन निकलता है। इसमें नलिका(ductless) नहीं होती है।  अत: इनका मार्ग निश्चित नहीं रहता है। इससे निकलने वाले हार्मोन रक्त में जाकर मिल जाते हैं।
जैसे- पिनियल ग्रंथि
पिट्यूटरी ग्रंथिथाइरोइड ग्रंथिपाराथाइराइड ग्रंथिथाइमस ग्रंथिएड्रिनल ग्रंथिअंडाशय (ओवरी) (मादाओं में) और वृषण (नर में) आदि।

 

(2) बाह्य-स्रावी ग्रंथि: इससे एंजाइम निकलता है इनमें नलिका (duet) पाया जाता है। अत: इनका मार्ग निश्चित होता है। बहिःस्त्रावी ग्रंथि से निकलने वाला एंजाइम रक्त में जाकर नहीं मिलता है।

जैसे :- श्वेत ग्रंथिअश्रुग्रंथ (दृष्टि और नेत्र स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक)दुग्ध ग्रंथि,

 

ग्रंथियां एवं उनसे निकलने वाले हार्मोन्स तथा उनके कार्य :-

1. हाइपोथैलेमस:- यह अंत: स्त्रावी ग्रंथियों को हार्मोन स्त्रावित करने के लिए उत्तजित करती हैं

 

2. पीनियल ग्रंथि :- इसे Biological Gland भी कहते हैं। इससे मेलाटोनिन नामक हार्मोन निकलता है जो नींद लाने में सहायक है। यह ग्रंथि दोनों आँख के बीच में स्थित होती है इसिलिये इसे तीसरी आँख (Third Eye) भी कहते है

 

3. थायराइड (अवटू) ग्रंथि: यह सबसे बड़ी अतः स्त्रावी ग्रंथि है। यह गुलाबी रंग के H आकार की गर्दन के पास होती है। इस ग्रंथि से थायरोक्सिन नामक हार्मोन निकलता है जो रक्त चाप (BP) को नियंत्रित करता है आयोडीन के कमी के कारण यह ग्रंथि फूल (सूज) जाती है जिस बिमारी को घेघा (ग्वायटर) कहते हैं।

 

4. पाराथाइरायड (पारा अवटू):- यह ग्रंथि रक्त में कैल्शियम (Ca) तथा फास्फोरस (P) की मात्रा को नियंत्रित करता है। यह ग्रंथि थायराइड के ठीक पीछे होती है।

 

5. थाइमस:- यह ग्रंथि वक्ष गुहा (छाती) में पाया जाता जाता है। इसका कार्य प्रोटीन का निर्माण करना हैकिन्तु 15 वर्ष की अवस्था के बाद यह कार्य करना बंद कर देती है।

 

6. एड्रिनल ग्रंथि (अधिवृक्क): यह ग्रंथि दोनों वृक्कों (Kidney) के ऊपरी सिरे पर स्थित रहती है। इसे आपातकालीन ग्रंथि (Emergency Gland) भी कहते हैं। इससे एड्रिनलीन नामक हार्मोन निकलता है। यह हार्मोन रक्तचाप (BP) को नियंत्रित करता है। इस हार्मोन को लड़ो उड़ो (Fire and flight) हार्मोन भी कहते हैं। इसे जीवन रक्षक हार्मोन भी कहते हैं। अधिवृक्क से रेनिन नामक हार्मोन भी निकलता है जो रक्तचाप को नियंत्रित करता है। अतः रक्त चाप को नियंत्रित करने में अधिवृक्क तथा थायराइड महत्वपूर्ण भूमिका हैं

 

7. पीयूष ग्रंथि (Pituitary Gland) :-  यह सबसे छोटी ग्रंथि है जो कि अत: स्त्रवी है। इसका भार 0.6 gm होता है यह मस्तिष्क के आधारतल में पाई जाती है। यह शरीर के विभिन्न क्रियाकलायों को नियंत्रित करती है। अतः इसे मास्टर ग्रंथि भी कहते हैं

 

पीयूष ग्रंथि निम्नलिखित हार्मोन निकालते हैं

(i) THS (Thyroid Stimuteting Harmon): ह हार्मोन थायरॉइड ग्रंथि से थायरॉक्सीन निकालने में उत्तेजित करता है। जब थायरॉइड ग्रंथि को आयोडिन की कमी होती है तो यह थायराक्सीन नहीं बनाता है और बीमारी घेघा कहलाती है।

 

(ii) STH (Stimulates production Harmons): यह वृद्धि को नियंत्रित करता है। इसकी कमी से बौनापन होता है तथा अधिकता से व्यक्ति अत्यधिक लम्बा हो जाता है।

 

(iii) LTH (Luteotropic hormone): यह ऑक्सीटोसीन हार्मोन के साथ मिलकर दूध के स्वाव में सहायक होता है

 

8. अग्याशय ग्रंथि:- इसका मुख्य कार्य ग्लूकोज का नियंत्रण करना है। यह हल्के पीले रंग की ग्रंथि है जो आमाशय के नीचे स्थित होती है। यदि ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है और उचित मात्रा में इंसुलिन (insuline) का स्त्रवण नही होता है तो मधुमेह (diabetes) होने का खतरा बन जाता है।

 

9. जनन ग्रंथि (Gonads Gland):-  वैसी ग्रंथियाँ जो जनन की क्रिया में भाग लेती है उनको जनन ग्रंथि (Gonade gland) कहते हैं।

 

अण्डाशय ग्रंथि:- बालिकाओं के शरीर में यौनावस्था में होने वाली सभी परिवर्तन इस हार्मोन के द्वारा होता है।

 

अंडाशय (Ovary) के द्वारा निम्न हार्मोनों का स्राव होता है।

 

(iएस्ट्रोजेन (Astrogen): यह हार्मोन मासिक चक्र को नियंत्रित करता है।

 

(iiप्रोजेस्टेरॉन (Progesteron): यह हार्मोन स्तन विकास तथा गर्भधारण करने में सहायक है।

 

(iii) रिलैक्सिन (Relaxin): यह हार्मोन प्रसव (Delivery) के लिए सहायक है। यह यूटेरस को चौड़ा कर देता हैताकि बच्चा आसानी से पैदा हो सके।

 

वृषण ग्रंथि:- वृषण (Testes) से निकलने वाले हार्मोन को टेस्टोस्टीरॉन कहते हैं। यह पुरुषोचित लैंगिक लक्षणों के परिवर्द्धन को एवं यौन-आचरण को प्रेरित करता है।

 

फाइटोंहार्मोन या पादपहार्मोन :

वे रसायनिक पदार्थ तो पादपों में नियंत्रण तथा समन्वय का कार्य करते हैफाइटोंहार्मोन या पादप हार्मोन कहलाते है। ये पांच प्रकार के होते है -

 

1. ऑक्सीन (Auxins):-

(i) यह हार्मोन पौधों की तनों की वृद्धि में सहायक होता है
(ii) ऑक्सीन फलों की वृद्धि को बढावा देते है।

(iii) कोशिकाओं की लंबाई में वृद्धि करते है।

 

2. जिबरेलीन (Gibberllin):-

(i) इस का मुख्य कार्य पौधों के स्तंभ की लम्बाई में वृद्धि करना है।

(ii) यह फलों तथा तनों की वृद्धि को बढावा देते है।

 

3. साइटोकाइनीन:-

(i) पौधे में कोशिका विभाजन को बढ़ावा देते है तथा क्लोरोफिल को नष्ट होने से बचाता है।

(ii) लों को खिलने में सहायता करता है।

 

4. ऐब्सिसिक अम्ल (Absesic Acid):-

(i) पौधे में वृद्धि को रोकता/नियंत्रित करता है।

(ii) पौधों में जल ह्रास को नियंत्रित करता है।

(iii) पौधों में प्रोटिन के संश्लेषण को प्रोत्साहित करता है।

 

5. इथिलीन:-

(i) एथिलीन का मुख्य कार्य फलों को पकाना है

(ii) मादा पुष्पों की संख्या बढाता है।

(iii) तनों को फुलने में सहायता करता है।


🖊 जन्तु - तंत्रिका तंत्र:
तंत्रिका तंत्र जानवरों में शरीर की विभिन्न गतिविधियों को नियंत्रित और समन्वयित करने के लिए मौजूद अंग प्रणाली है। तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और तंत्रिकाओं का एक विशाल नेटवर्क शामिल होता है जो पूरे शरीर में फैला होता है।

आवेग:- तंत्रिका तंत्र रासायनिक संकेतों के रूप में संदेशों को भेजने, प्राप्त करने और संसाधित करने के लिए जिम्मेदार है जिन्हें आवेग कहा जाता है।

तंत्रिका ऊतक तंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरॉन्स के एक संगठित नेटवर्क से बना होता है। यह शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक विद्युत आवेगों के माध्यम से जानकारी पहुंचाने के लिए विशिष्ट है। न्यूरॉन तंत्रिका तंत्र की मूल इकाई है। प्रत्येक न्यूरॉन में तीन भाग होते हैं, अर्थात्, कोशिका शरीर या साइटॉन, शाखित प्रक्षेपण जिसे डेंड्राइट कहा जाता है, और कोशिका शरीर से लंबी प्रक्रिया, जिसे एक्सॉन कहा जाता है।

सिनैप्स :- सिनैप्स दो न्यूरॉन्स के बीच का अंतराल है।

नसें:- नसें मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से निकलने वाली धागे जैसी संरचनाएं हैं। नसें शरीर के सभी भागों तक फैलती हैं और शरीर में संदेशों को ले जाने के लिए जिम्मेदार होती हैं।

तंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरॉन्स के प्रकार:
• संवेदी तंत्रिकाएं इंद्रियों से मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी तक संदेश भेजती हैं।
• मोटर तंत्रिकाएं मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी से संदेशों को शरीर की सभी मांसपेशियों और ग्रंथियों तक वापस ले जाती हैं।
• इंटरन्यूरॉन या रिले न्यूरॉन केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के विशिष्ट क्षेत्रों के भीतर न्यूरॉन को जोड़ता है। ये न तो मोटर हैं और न ही संवेदी।

🖊 प्रतिवर्ती क्रियाओं में क्या होता है?
प्रतिवर्ती क्रिया: एक प्रतिवर्ती क्रिया, जिसे अलग तरह से प्रतिवर्त के रूप में जाना जाता है, एक उत्तेजना के जवाब में एक अनैच्छिक और लगभग तात्कालिक आंदोलन है। रिफ्लेक्स पर्यावरण की प्रतिक्रिया में शरीर द्वारा उत्पन्न एक क्रिया है।

सिग्नल या इनपुट का पता लगाने और आउटपुट एक्शन द्वारा उस पर प्रतिक्रिया देने की प्रक्रिया जल्दी से पूरी की जा सकती है। इस तरह के कनेक्शन को आमतौर पर रिफ्लेक्स आर्क कहा जाता है। रिफ्लेक्स आर्क्स रीढ़ की हड्डी में ही बनते हैं; हालाँकि सूचना इनपुट मस्तिष्क तक पहुँचती रहती है। उच्चतर जानवरों में, अधिकांश संवेदी न्यूरॉन्स सीधे मस्तिष्क में नहीं जाते हैं, बल्कि रीढ़ की हड्डी में सिनैप्स होते हैं। त्वरित प्रतिक्रिया के लिए रिफ्लेक्स आर्क अधिक कुशल बना हुआ है।

🖊 मानव मस्तिष्क:
तंत्रिका तंत्र के प्रकार
तंत्रिका तंत्र को दो प्रणालियों में विभाजित किया गया है - केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और परिधीय तंत्रिका तंत्र।

केंद्रीय तंत्रिका तंत्र: इसमें मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी शामिल है। यह शरीर से जानकारी प्राप्त करता है और विशेष अंगों को निर्देश भेजता है। मस्तिष्क के ऐसे तीन प्रमुख भाग या क्षेत्र होते हैं अर्थात् अग्र मस्तिष्क, मध्य मस्तिष्क और पश्च मस्तिष्क।
• अग्रमस्तिष्क मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग है। इसमें सेरिब्रम और शामिल हैं
डाइएनसेफेलॉन. सेरिब्रम स्मृति और बुद्धि और श्रवण, गंध और दृष्टि जैसे संवेदी केंद्रों का स्थान है। डाइएनसेफेलॉन दबाव और दर्द का स्थान है।
• मध्यमस्तिष्क अग्रमस्तिष्क को पश्चमस्तिष्क से जोड़ता है और देखने और सुनने की सजगता को नियंत्रित करता है।
• पश्चमस्तिष्क में सेरिबैलम, पोंस और मेडुला शामिल होते हैं। सेरिबैलम मांसपेशियों की गतिविधियों का समन्वय करता है और संतुलन और मुद्रा बनाए रखता है। मज्जा रक्तचाप, लार आना, उल्टी और दिल की धड़कन जैसी अनैच्छिक गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
• रीढ़ की हड्डी मस्तिष्क के मज्जा से लेकर कशेरुक स्तंभ की पूरी लंबाई तक फैली हुई है और कशेरुक स्तंभ या रीढ़ की हड्डी द्वारा संरक्षित है।

परिधीय तंत्रिका तंत्र: इसमें कपाल और रीढ़ की हड्डी की नसें होती हैं जो क्रमशः मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी से निकलती हैं।

🖊 ऊतकों की सुरक्षा कैसे की जाती है?
मानव मस्तिष्क खोपड़ी की मोटी हड्डियों और मस्तिष्कमेरु द्रव नामक एक तरल पदार्थ द्वारा संरक्षित होता है जो आगे सदमे अवशोषण प्रदान करता है।

🖊 तंत्रिका ऊतक किस प्रकार क्रिया उत्पन्न करता है?
जब तंत्रिका आवेग मांसपेशियों तक पहुंचता है तो मांसपेशी फाइबर को हिलना चाहिए। मांसपेशी कोशिकाएं अपना आकार बदलकर गति करेंगी जिससे वे छोटी हो जाएंगी। मांसपेशियों की कोशिकाओं में विशेष प्रोटीन होते हैं जो तंत्रिका विद्युत आवेगों के जवाब में कोशिका में अपना आकार और व्यवस्था दोनों बदलते हैं। जब ऐसा होता है तो इन प्रोटीनों की नई व्यवस्था मांसपेशियों की कोशिकाओं को छोटा रूप देती है।

पौधों में समन्वय:
सभी जीवित वस्तुएँ पर्यावरणीय उत्तेजनाओं पर प्रतिक्रिया करती हैं। पौधे भी कोशिकाओं द्वारा स्रावित रासायनिक यौगिकों की मदद से उत्तेजनाओं पर प्रतिक्रिया करते हैं। जीवित जीव होने के कारण पौधे कुछ हलचलें प्रदर्शित करते हैं। पौधे दो अलग-अलग प्रकार की गति दर्शाते हैं - एक विकास पर निर्भर और दूसरा विकास से स्वतंत्र।
पौधे इस जानकारी को कोशिका से कोशिका तक पहुँचाने के लिए विद्युत रासायनिक साधनों का भी उपयोग करते हैं लेकिन पौधों में जानकारी के संचालन के लिए कोई विशेष ऊतक नहीं होता है। पौधे एक विशेष दिशा में बढ़ते हुए धीरे-धीरे उत्तेजनाओं पर प्रतिक्रिया करते हैं। चूँकि यह वृद्धि दिशात्मक होती है इसलिए ऐसा प्रतीत होता है मानो पौधा घूम रहा हो।

दिशात्मक हलचलें: इन्हें उष्णकटिबंधीय हलचलें भी कहा जाता है। ये गतिविधियाँ या तो उत्तेजना की ओर हो सकती हैं या उससे दूर हो सकती हैं।
• अंकुरों में सकारात्मक प्रकाशानुवर्तन देखा जाता है जो प्रकाश की ओर झुककर प्रतिक्रिया करते हैं। ज़मीन से दूर बढ़ने पर अंकुरों में नकारात्मक भू-अनुवर्तनवाद देखा जाता है।
• जड़ें प्रकाश से दूर झुकती हैं और नकारात्मक प्रकाशानुवर्तन प्रदर्शित करती हैं। वे सकारात्मक भू-अनुवर्तन प्रदर्शित करते हुए जमीन की ओर बढ़ते हैं।
• हाइड्रोट्रोपिज्म एक विकास प्रतिक्रिया है जिसमें दिशा पानी की उत्तेजनाओं द्वारा निर्धारित होती है।
• केमोट्रोपिज्म रासायनिक उत्तेजना के जवाब में पौधे के हिस्से की वृद्धि की गति है।
 जैसे:-पराग नलिकाओं का बीजांड की ओर बढ़ना।

हार्मोन:- हार्मोन उत्तेजित कोशिकाओं द्वारा जारी रासायनिक यौगिक हैं। हार्मोन कोशिका के चारों ओर फैलते हैं। वे जहां वे कार्य करते हैं उससे दूर स्थानों पर संश्लेषित होते हैं और बस कार्य क्षेत्र में फैल जाते हैं। विभिन्न पौधों के हार्मोन वृद्धि, विकास और पर्यावरण के प्रति प्रतिक्रियाओं के समन्वय में मदद करते हैं। पौधे द्वारा स्रावित विभिन्न हार्मोन ऑक्सिन, जिबरेलिन, साइटोकिनिन, एब्सिसिक एसिड हैं।
• ऑक्सिन तने की नोक पर संश्लेषित हार्मोन हैं। ये कोशिका वृद्धि द्वारा पौधे को बढ़ने में मदद करते हैं। ऑक्सिन शूट एपिकल प्रभुत्व को प्रेरित करता है।
• जिबरेलिन्स हार्मोन हैं जो तने की वृद्धि, बीज के अंकुरण, बोल्टिंग और फूल आने में मदद करते हैं।
• साइटोकिनिन हार्मोन हैं जो तीव्र कोशिका विभाजन वाले क्षेत्रों, जैसे फलों और बीजों में मौजूद होते हैं।
वे रंध्रों के खुलने को भी बढ़ावा देते हैं।
• एब्सिसिक एसिड एक हार्मोन है जो विभिन्न भागों में विकास को रोकता है। यह रंध्रों के बंद होने के लिए भी जिम्मेदार है। इसके प्रभावों में पत्तियों का मुरझाना भी शामिल है।

जंतुओं में हार्मोन:
अंतःस्रावी तंत्र नलिकाहीन ग्रंथियों द्वारा निर्मित प्रणाली है जो हार्मोन नामक रासायनिक पदार्थों का स्राव करती है। अंतःस्रावी ग्रंथियाँ सीधे रक्त में हार्मोन छोड़ती हैं।
हार्मोन सूक्ष्म, रासायनिक संदेशवाहक होते हैं जिन्हें लक्ष्य अंगों पर कार्य करने के लिए रक्त में प्रवाहित किया जाता है।

एंडोक्रिन ग्लैंड्स
हमारे शरीर में मौजूद विभिन्न प्रकार की अंतःस्रावी ग्रंथियां हैं पिट्यूटरी ग्रंथि, पीनियल ग्रंथि, हाइपोथैलेमस, थायरॉयड, पैराथाइरॉइड, थाइमस, अधिवृक्क ग्रंथि, अग्न्याशय, वृषण और अंडाशय।

अधिवृक्क ग्रंथियाँ:
ये किडनी के ऊपर स्थित होते हैं।
अधिवृक्क ग्रंथि के दो क्षेत्र अधिवृक्क प्रांतस्था और अधिवृक्क मज्जा हैं।
• अधिवृक्क प्रांतस्था कोर्टिसोल, एल्डोस्टेरोन और एण्ड्रोजन जैसे हार्मोन का स्राव करती है।
• अधिवृक्क मज्जा एड्रेनालाईन और नॉरएड्रेनालाईन जैसे हार्मोन का स्राव करता है। एड्रेनालाईन को "लड़ाई या उड़ान का हार्मोन" या आपातकालीन हार्मोन भी कहा जाता है। यह शरीर को खतरे, क्रोध और उत्तेजना जैसी शारीरिक तनाव की आपातकालीन स्थिति का सामना करने के लिए तैयार करता है।

थायरॉयड ग्रंथि:
• यह गर्दन में, स्वरयंत्र के उदर में स्थित होता है।
• यह सबसे बड़ी अंतःस्रावी ग्रंथियों में से एक है।
• इस ग्रंथि द्वारा उत्पादित प्रमुख हार्मोन ट्राईआयोडोथायरोनिन और थायरोक्सिन हैं।
• थायरोक्सिन एक हार्मोन है जो शरीर में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के चयापचय को नियंत्रित करता है। थायरोक्सिन के संश्लेषण के लिए आयोडीन आवश्यक है। भोजन में आयोडीन की कमी से घेंघा रोग होता है। इस बीमारी का एक लक्षण गर्दन में सूजन है।

पिट्यूटरी ग्रंथि:
• यह मस्तिष्क के आधार पर स्थित होता है।
• इसे मास्टर ग्रंथि माना जाता है क्योंकि यह अंगों के साथ-साथ अन्य ग्रंथियों को विनियमित करने के लिए कई हार्मोन स्रावित करती है।
• इस ग्रंथि द्वारा स्रावित विभिन्न हार्मोनों में ग्रोथ हार्मोन, टीएसएच, एफएसएच, एलएच, एसीटीएच, एमएसएच, वैसोप्रेसिन और ऑक्सीटोसिन शामिल हैं। ग्रोथ हार्मोन शरीर की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करता है। अगर बचपन में इस हार्मोन की कमी हो जाए तो बौनापन हो जाता है। इस हार्मोन के अधिक स्राव से विशालकाय रोग हो जाता है।

गोनाड:
मनुष्यों में दो प्रकार के गोनाड मौजूद होते हैं महिला गोनाड और नर गोनाड।
महिला गोनाड
• अंडाशय की एक जोड़ी मादा में गोनाड बनाती है।
• अंडाशय महिला यौन अंग हैं जो पेट की गुहा के दोनों ओर एक-एक होते हैं। अंडाशय दो हार्मोन, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन करते हैं।
• एस्ट्रोजेन यौवन के दौरान होने वाले परिवर्तनों को नियंत्रित करता है, जैसे स्त्री की आवाज, कोमल त्वचा और स्तन ग्रंथियों में विकास।
• प्रोजेस्टेरोन मासिक धर्म चक्र में गर्भाशय परिवर्तन को नियंत्रित करता है, और गर्भावस्था को बनाए रखने में मदद करता है।

नर गोनाड
• वृषण की एक जोड़ी पुरुषों में गोनाड बनाती है।
• वृषण की एक जोड़ी पुरुष यौन अंग है जो अंडकोश में स्थित होती है, जो पेट के बाहर होती है।
• वृषण हार्मोन टेस्टोस्टेरोन का उत्पादन करते हैं।
• टेस्टोस्टेरोन उन परिवर्तनों को नियंत्रित करता है, जो यौवन के दौरान होते हैं, जैसे गहरी आवाज़, लिंग का विकास, चेहरे और शरीर पर बाल।

अग्न्याशय:
यह ग्रहणी के वक्र के भीतर पेट के ठीक नीचे स्थित होता है। यह कार्य में एक्सोक्राइन और एंडोक्राइन दोनों है।
• यह इंसुलिन, ग्लूकागन, सोमैटोस्टैटिन और अग्नाशय पॉलीपेप्टाइड जैसे हार्मोन स्रावित करता है।
• इंसुलिन हमारे रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है। थोड़ी मात्रा में स्रावित इंसुलिन हमारे रक्त में शर्करा के स्तर को बढ़ा देता है जो आगे चलकर मधुमेह मेलिटस नामक बीमारी का कारण बनता है।

पीनियल ग्रंथि:
• यह मस्तिष्क के केंद्र के पास, डाइएनसेफेलॉन के पृष्ठीय स्थित होता है।
• यह मेलाटोनिन हार्मोन का उत्पादन करता है।
• मेलाटोनिन प्रजनन विकास, जागने और सोने के पैटर्न के मॉड्यूलेशन और मौसमी कार्यों को प्रभावित करता है।

हाइपोथैलेमस:
• यह मस्तिष्क का न्यूरो-एंडोक्राइन भाग है।
• यह पिट्यूटरी ग्रंथि के माध्यम से तंत्रिका तंत्र और अंतःस्रावी तंत्र को जोड़ता है।
• इस ग्रंथि द्वारा स्टोमेटोस्टैटिन, डोपामाइन जैसे हार्मोन स्रावित होते हैं।

पैराथाइराइड ग्रंथियाँ:
• ये गर्दन में मौजूद थायरॉयड ग्रंथि की पृष्ठीय सतह पर लगी छोटी, अंडाकार आकार की दो जोड़ी ग्रंथियां हैं।
• वे पैराथार्मोन का स्राव करते हैं। यह हड्डियों और रक्त में कैल्शियम और फॉस्फेट आयनों के नियमन में मदद करता है।
• अल्प स्राव से टेटनी होती है और अति स्राव से ऑस्टियोपोरोसिस होता है।

थाइमस ग्रंथि:
• यह हृदय के सामने, उरोस्थि के ऊपरी भाग में स्थित होता है।
• यह थाइमोसिन हार्मोन का उत्पादन करता है।
• यह टी-लिम्फोसाइटों की परिपक्वता में मदद करता है।
रिलीज़ होने वाले हार्मोन का समय और मात्रा फीडबैक तंत्र द्वारा नियंत्रित होती है।
उदाहरण के लिए,
यदि रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ता है, तो इसका पता अग्न्याशय की कोशिकाओं द्वारा लगाया जाता है जो अधिक इंसुलिन का उत्पादन करके प्रतिक्रिया करते हैं। जैसे ही रक्त शर्करा का स्तर गिरता है, इंसुलिन का स्राव कम हो जाता है।

(iii) तनों को फुलने में सहायता करता है।

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