Page 206 - इतिहास , वर्ग 10 वीं , अध्याय 2 - समाजवाद एवं साम्यवाद
इतिहास
की दुनिया , वर्ग 10
अध्याय – 2 . समाजवाद एवं साम्यवाद
🖊 वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में चार विकल्प दिए
गए हैं। जो आपको सर्वाधिक उपयुक्त लगे, उनमें सही का चिह्न लगावे :
1. रूस में
कृषक दास प्रथा का अंत कब हुआ ?
(क) 1861
(ख)
1862
(ग) 1863
(घ)
1864
उत्तर :- (क) 1861
2. रूस में
जार का अर्थ क्या होता था ?
(क) पीने का बर्तन
(ख)
पानी रखने का मिट्टा का पात्र
(ग) रूस का सामन्त
(घ)
रूस का सम्राट
उत्तर :- (घ) रूस का सम्राट
3. कार्ल मार्क्स को जन्म कहाँ हुआ था
?
(क) इंग्लैंड
(ख) जर्मनी
(ग) इटली
(घ) रूस
उत्तर :- (ख) जर्मनी
4. साम्यवादी शासन का पहला प्रयोग कहाँ हुआ ?
(क) रूस
(ख) जापान
(ग) चीन
(घ) क्यूबा
उत्तर :- (क) रूस
5. यूटोपियन समाजवादी कौन नहीं था ?
(क) लुई ब्लां
(ख) सेंट साइमन
(ग) कार्ल मार्क्स
(घ) रॉबर्ट ओवन
उत्तर :- (ग) कार्ल मार्क्स
6. 'वार एंड पीस' किसकी रचना है?
(क) कार्ल मार्क्स
(ख) टॉलस्टाय
(ग) दोस्तोवस्की
(घ) एंजल्स
उत्तर :- (ख) टॉलस्टाय
7. बोल्शेविक क्रांति कब हुई ?
(क) फरवरी 1917
(ख) नवंबर 1917
(ग) अप्रैल 1917
(घ) अक्टूबर 1905
उत्तर :- (ख) नवंबर 1917
8. लाल सेना का गठन किसने किया था ?
(क) कार्ल मार्कस
(ख) स्टालिन
(ग)
ट्रॉटस्की
(घ)
केरेंसकी
उत्तर :- (ग) ट्रॉटस्की
9. लेनिन की मृत्यु कब हुई ?
(क) 1921
(ख) 1922
(ग) 1923
(घ) 1924
उत्तर :- (घ) 1924
10. बेस्टलिटोवस्क की संधि किन देशों के बीच हुआ था ?
(क) रूस और इटली
(ख) रूस और फ्रांस
(ग) रूस और इंग्लैण्ड
(घ) रूस और जर्मनी
उत्तर :- (घ) रूस और जर्मनी
उत्तर :- 1. (क) , 2. (घ) , 3. (ख) , 4. (क) , 5. (ग) , 6. (ख) , 7. (ख) , 8. (ग) , 9. (घ) , 10. (घ) |
🖊 रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
1. रूसी क्रांति के समय वहाँ का
शासक......................था।
2. बोल्शेविक क्रांति का नेतृत्व ने......................किया
था।
3 . नई आर्थिक नीति...................... ई. में लागू
हुआ था।
4. राबर्ट ओवन......................का निवासी था।
5. वैज्ञानिक समाजवाद का जनक......................को
माना जाता है।
उत्तर :- 1.जार निकोलस द्वितीय, 2. लेनिन , 3. 1921 , 4. ग्रेट ब्रिटेन , 5. यूटोपियनों |
🖊 अति लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 20 शब्दों में उत्तर दें) :
प्रश्न 1. पूँजीवाद क्या है?
उत्तर
:- पूँजीवाद एक ऐसी अर्थव्यवस्था है, जिसके तहत उत्पादन के सभी
साधनों पर पूँजीपतियों का अधिकार रहता है। वे ही कारखाने लगाते और उत्पादन करते
है। इस अर्थव्यवस्था में पूँजीपति लाभान्वित होते हैं।
प्रश्न 2. खूनी रविवार क्या है?
उत्तर :- 1905 में जापान जैसे छोटे एशियाई देश से जब रूस हार गया
तो वहीं क्रांति हो गई। 9 जनवरी, 1905 को लोग 'रोती दो' के नारे के साथ राजमहल की ओर प्रदर्शन करते बढ़ने
लगे। सेना ने इन निहत्थों पर गोलियाँ चलानी शुरू कर दी। बहुतेरे लोग, जिनमें स्वियों और बच्चे
भी थे मारे गए। यह रविवार का दिन था। तब से उस तिथि का रविवार 'खूनी रविवार' कहलाने लगा।
प्रश्न 3. अक्टूबर कांति क्या है?
उत्तर :- 7 नवंबर, 1917 ई. को बोल्शेविकों ने करेस्की सरकार का तरता पलट
दिया और रूस पर अधिकार जमा लिया। थी तो वह नवम्बर क्रांति किन्तु रूसी कलेण्डर के
अनुसार यह अक्टूबर था, जिस कारण इसे अक्टूबर क्रांति कहते हैं।
प्रश्न 4. सर्वहारा वर्ग किसे कहते हैं?
उत्तर
:- समाज का वैसा वर्ग, जिसमें किसान, मजदूर, फुटपाथी दुकानदार एवं आम
गरीब लोग, जिनके पास अपना कहने के लिए कोई वस्तु नहीं होती, 'सर्वहारा' कहलाता है।
प्रश्न 5. कांति के पूर्व रूसी किसानों की स्थिति कैसी थी?
उत्तर :- क्रांति
से पूर्व रूसी किसनों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। उनके खेत बहुत छोटे-छोटे थे
जिनपर वे पारंपरिक ढंग से खेती करते थे। उनके पास पूँजी की कमी थी। वे करों के बोझ
से दबे रहते थे।
🖊 लघु उत्तरीय प्रश्न (लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें):
प्रश्न 1. रूसी क्रांति के किन्हीं दो कारणों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर :- रूसी क्रांति के प्रमुख दो कारण थे: (i) जार की निरंकुशता तथा (ii) मजदूरो की
दयनीय स्थिति ।
(i) जार की निरंकुशता - उन्नीसवीं सदी के मध्य तक
यूरोप की राजनीतिक संरचना बदल चुकी थी। राजाओं की शक्ति कम कर दी गई थी। परन्तु
रूस का जार अभी भी पुरानी दुनिया में जी रहा था और राजा की दैवी अधिकार
में
विश्वास करता था। वह अपनी शक्ति कम करने को तैयार नहीं था।
(ii) मजदूरों की दयनीय स्थिति - रूसी क्रांति के पूर्व वहाँ के मजदूरों को अधिक समय
तक काम करने के बावजूद उन्हें मजदूरी कम मिलती थी। मजदूरी इतनी कम मिलती थी कि
उससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण नहीं कर पाते थे। मालिकों द्वारा उनके साथ
दुर्व्यवहार भी किया जाता था।
प्रश्न 2. रूसीकरण की नीति क्रांति हेतु कहाँ तक उत्तरदायी थी ?
उत्तर
:- रूस में अनेक राष्ट्रो के लोग रहते थे। स्लाव जाति के
लोगों की अधिकता थी। फिन, पोल, जर्मनी, यहूदी आदि जातियों की भी कमी नहीं थी। इनकी जाति तो
अलग थी ही, ये अलग-अलग भाषाओं का भी उपयोग करते थे। इनके
रस्म-रिवाज विभिन्न थे। ऐसी स्थिति में जार निकोलस द्वितीय ने इन लोगों पर रूसी
भाषा, शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया। इससे
अल्पसंख्यकों में निराशा फैलने लगी। जार के इस “रूसीकरण” का सभी अल्पसंख्यकों
द्वारा विरोध होने लगा। इस नीति के विरुद्ध 1863 में 'पोली' ने विद्रोह कर दिया, जिये निर्देयतापूर्वक दवा
दिया गया।
उत्तर :- 1917 की बोल्शेविक क्रांति के पूर्व विश्व में पूँजीवादी व्यवस्था का बोलबाला था. जिसमें उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत अधिकार माना जाता था। लेकिन क्रांति के सफल होने के बाद रूस में साम्यवादी व्यवस्था कायम की गई। इस व्यवस्था के तहत उत्पादन के सभी साधनों पर राज्य का अधिकार कायम करना है। श्रमिकों को उनके श्रम के अनुसार पारिश्रमिक दी जाती है। इससे श्रमिक मन लगाकर काम करते हैं और उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करते हैं। उत्पादन में सभी का भाग बराबर रहता है। यही व्यवस्था 'साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था थी।' यह केवल पढ़ने में आकर्षक है, किन्तु व्यावहारिक रूप देना कठिन है। यही कारण था कि रूस में यह व्यवस्था लगभग नाकाम रही।
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उत्तर :- लेनिन ने बोल्शेविक क्रांति के सफल होते ही रूस में पूर्णतः मार्क्सवादी सिद्धान्त के अनुसार आर्थिक व्यवस्था लागू कर दी। लेकिन जनता इसके लिए पहले से तैयार नहीं थी। ऐसा लगा कि उत्पादन गिरकर पहले के मुकाबले बहुत हद तक नीचे आ गया, बल्कि इतना तक हुआ कि अनाज सरकार को देने के बजाय किसान उसे जला देना बेहतर समझने लगे। इससे निबटने के लिए लेनिन को नई आर्थिक नीति लागू करनी पड़ी। इस नीति के अनुसार किसानों को एक हद तक अपनी उपज का कुछ भाग बेचने की सुविधा दी गई। 20 श्रमिको को रखकर कोई भी निजी कारखाना चला सकता था। लेनिन के इस कार्य का उसके विरोधियों द्वारा आलोचना भी हुई। लेकिन उसने इसे यह कहकर टाल दिया कि "तीन कदम आगे बढ़कर एक कदम पीछे चलना दो कदम आगे चलने के बराबर है।"
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उत्तर :- रूस में क्रांति का मार्ग प्रशस्त करने में केवल प्रथम विश्व युद्ध में पराजय ही नहीं था, बल्कि कुछ अन्य कारण थी थे। युद्ध में रूस की हार नहीं हुई थी, बल्कि लेनन ने क्रांति के बाद स्वयं युद्ध से हाथ खींच लिया और सैनिकों को वापस बुला लिया। कारण था कि देश के आर्थिक विकास के लिए शांति आवश्यक थी। इतना ही नहीं, उसने जर्मनी से अनाक्रमण संधि तक कर ली। वास्तव में क्रांति की जमीन पहले से ही तैयार हो रही थी। 1805 में रूस का जापान से हार जाना, खूनी रविवार, रासपुटिन का षड्यंत्र, देश में फैल रही गरीबी, अन्य भाषा भाषियों पर जबदस्ती रूसी भाषा लादना आदि अनेक कारणों ने क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया था।
🖊 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें):
प्रश्न 1. रूसी क्रांति के कारणों की विवेचना करें ।
उत्तर :- रूसी क्रांति के कारण निम्नलिखित थे :
(i) जार की निरंकुशता एवं आयोग्य शासन - 19वीं सदी के मध्य तक यूरोप की राजनीतिक संरचना बदल चुकी थी। राजा की शक्ति घटा दी गई थी। परन्तु रूस का जार अभी भी देवी सिद्धान्त को पकड़े हुए था । वह अपना विशेषाधिकार छोड़ने को तैयार नहीं था। उसे आमजनता कोई जिता नही। उसके अफसर अयोग्य थे । नियुक्ति का आधार योग्यता की जगह अपने लोगों से स्थान भरना था । स्वेचछाचारित बढ़ गई थी। जनता की स्थिति बदतर होती जा रही थी।
(ii) मजदूरों की दयनीय स्थिति - मजदूरों को अधिक घंटों तक काम करना पड़ता था। उसके एवज में मिलने वाली मजदूरी इतनी कम होती थी कि उससे उन्हें अपने परिवार का भरण-पोषण कठिनाई से होती थी। उनके साथ मालिक दुव्र्यवहार भी करते थे । हड़ताली पर प्रतिबंध था। उन्हें राजनीतिक अधिकारों को कौन कहे किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त नहीं थे। इस कारण मजदूर क्षुब्ध थे।
(iii) औद्योगीकरण की समस्या - यूरोपीय देश जहाँ औद्योगिक क्रांति का लाभ उठाने में लगे थे, वहीं रूस में औद्योगिक पिछड़ापन व्याप्त था। वहाँ चूंकि पूँजी का अभाव था, जिससे विदेशी पूँजी के बल पर कुछ उद्योग थे, लेकिन वे खास-खास स्थानों पर ही अवस्थित थे। विदेशी पूँजीपति अपनी आय बढ़ाने के चक्कर में मजदूरों का शोषण करते थे। मजदूर असहाय थे और राजा बेफिकर था। सर्वत्र असंतोष व्याप्त था।
(iv) रूसीकरण की नीति - रूस में अनेक राष्ट्र के लोग निवास करते थे। ये विभिन्न भाषा बोलते थे और इनके रस्म-रिवाज भी अलग-अलग थे। लेकिन जार का यह कानून कि सबको रूसी पढ़नी और बोलनी पड़ेगी, इससे विभिन्न लोगों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा और हलचल मच गई। 1863 में इस नीति के विरोध में विद्रोह भी हुआ, लेकिन उसे निर्दयतापूर्वक दबा दिया गया। लोगों में इसका भारी आक्रोश था।
(v) विदेशी घटनाओं का प्रभाव - रूस की क्रांति में विदेशी घटनाओं का भी प्रभाव पड़ा। क्रीमिया-युद्ध में रूस पराजित तो हुआ ही, 1905 में जापान से भी हार गया। जापान से हार ने आग में घी का काम किया । जार की ताकत का पोल खुल गया। प्रथम विश्व युद्ध में रूस मित्र देशों की ओर से लड़ रहा था, लेकिन सेना हर मोर्चे पर हार रही थी। इन सबो ने रूसी क्रांति का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
प्रश्न 2. नई आर्थिक नीति क्या है?
उत्तर :- लेनिन ने देखा कि समाजवादी व्यवस्था देश के लोगों को पच नहीं रही है। एकाएक पूँजीवादी विश्व से टकराना भी उसके लिए कठिन था। अतः उसने 1921 ई. में अपनी 'नई आर्थिक नीति' (New Economic Policy = NEP) की घोषणा करनी पड़ी । नई आर्थिक नीति की निम्नांकित आठ सूत्र थे :1. किसानों का अनाज हड़प लेने के स्थान पर उनसे एक निश्चित कर लेने की व्यवस्था चालू की गई। अब किसान अपनी उपज का मनचाहा इस्तेमाल करने को स्वतंत्र हो गए।
2. यद्यपि यह सिद्धान्त की जमीन राज्य की है, को कायम रखते हुए यह व्यावहारिक रूप से मान लिया गया कि जमीन किसान की ही है।
3. 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को 'व्यक्तिगत' उद्योग मान लिया गया। वे अब पुनः अपने कारखाने के मालिक बन गए।
4. उद्योगों का विकेन्द्रीकरण कर निर्णय और क्रियान्वयन के बारे में विभिन्न इकाइयों को काफी छूट दी गई।
5. सीमित तौर पर विदेशी पूँजी भी लगाई जा सकती थी।
6. व्यक्तिगत सम्पत्ति और जीवन बीमा राजकीय एजेंसियाँ चलाने लगीं।
7. विभिन्न स्तरों पर बैंक खोले गए ताकि जनता को सुविधा हो।
8. ट्रेड यूनियनों की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई।
प्रश्न 3. रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें।
उत्तर :- रूसी क्रांति के निम्नलिखित प्रभाव पड़े।
(i) रूसी कांति के सफल होने के बाद वहाँ पूर्णतः सर्वहारा वर्ग, जिसे श्रमिक वर्ग भी कह सकते हैं, का शासन स्थापित हो गया। इस सफलता ने दुनिया के अन्य देशों को भी प्रभावित किया। वहाँ भी कम्युनिस्ट पार्टियों का गठन होने लगा।
(ii) रूसी क्रांति का एक प्रभाव यह भी पड़ा कि विश्व स्पष्टतः दो खेमों में बँट गया एक साम्यवादी विश्व और दूसरा पूँजीवादी विश्व। तब यूरोप भी दो भागों में बँट गया एक पूर्वी यूरोप तथा दूसरा पश्चिमी यूरोप ।
(iii) द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात यह और भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुआ । साम्यवादी विश्व का अगुआ रूस था तथा पूँजीवादी विश्व का अगुआ संयुक्त राज्य अमेरिका था। दोनों खेमों में शस्वों की होड़ मच गई। शीत युद्ध स्पष्ट देखा जाने लगा।
(iv) अब पूँजीवादी देश भी स्वयं को समाजवादी देश कहलाने में गौरव का अनुभव करने लगे। इसके लिए उन्हें अपनी अर्थव्यवस्था में भी कुछ फेरबदल करनी पड़ी। इस प्रकार पूरे विश्व में पूँजीवाद के चरित्र में बदलाव आने लगा ।
(v) रूसी क्रांति की सफलता ने एशियाई और अफ्रीकी गुलाम देशों में स्वतंत्र होने की कसमसाहट होने लगी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आन्दोलन इतने तेज हुए कि अपने सभी उपनिवेशों से यूरोपियनों को भागना पड़ा।
प्रश्न 4. कार्ल मार्क्स की जीवनी एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर :- कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 को एक जर्मन यहूदी परिवार में हुआ था। मार्क्स ने हाई स्कूल तक की शिक्षा ट्रियर में और बाद की उच्च शिक्षा बॉन विश्वविद्यालय में प्राप्त की। विधिशास्त्र में वह ग्रेजुएट था। बाद में उसने बर्लिन विश्वविद्यालय में दाखिला ली, जहाँ उसकी मुलाकात हीगल से हुई। उसके विचारों से वह बहुत प्रभावित हुआ। 1843 में उसका विवाह जेनी नामक युवती से हुआ, जिसे वह पहले से ही जानता था। अब उसकी रुचि राजनीति और समाज-सुधार की ओर अग्रसर होने लगी। उसने मांटेस्क्यू और रूसों के विचारों का गहन अध्ययन करना शुरू कर दिया। उसकी मुलाकात फ्रेडरिक एंगल्स से पेरिस में सन् 1844 के आसपास हुई। एंगल्स के विचारों से प्रभावित हो मार्क्स ने श्रमिकों के कष्टों और उनकी कार्य की दशाओं पर गहन विचार किया। उसने एंगल्स के साथ मिलकर 1848 में एक साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया। उस घोषणा पत्र को आधुनिक समाज का जनक कहा जाता है।
1848 के उस साम्यवादी घोषणा पत्र में मार्क्स ने अपने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विचारों को स्पष्ट रूस से व्यक्त किया। अब मार्क्स विश्व के उन गिने-चुने चितको में एक माना जाने लगा, क्योंकि उसने इतिहास की धारा को व्यापक रूप से प्रभावित किया था। कार्ल मार्क्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक दास-कैपिटल की रचना 1867 में की,जिसे ' समाजवादियों की बाइबिल ' कहा जाता है।
कार्ल मार्क्स ने अपने पाँच सिद्धान्तों का प्रतिपादित किया जो निम्नलिखित है:
(i) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धान्त
(ii) वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त
(iii) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या
(iv) मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त तथा
(v) राज्यहीन एवं वर्गहीन समाज की स्थापना
प्रश्न 5. यूटोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :- सर्वप्रथम यूटोपियन
समाजवाद (स्वप्नदर्शी समाजवाद) का प्रार्दुभाव फ्रांस में हुआ। इस सिद्धान्त का
पहला व्याख्याता 'सेंट साइमन' था। साइमन का मानना था कि राज्य एवं समाज को इस ढंग
से संगठित होना चाहिए कि लोग एक-दूसरे का शोषण करने के स्थान पर मिल-जुलकर
प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करें। समाज को चाहिए कि वह निर्धनों के भौतिक एवं नैतिक उत्थान के
लिए काम करे। उसने घोषित किया कि "प्रत्येक को उसकी क्षमता के अनुसार काम
दिया जाय तथा प्रत्येक को उसके काम के अनुसार मूल्य दिया जाय।" आगे चलकर यही
वाक्य समाजवाद का मूल नारा बन गया ।
फ्रांस का ही एक अन्य यूटोपियन विचारक चार्ल्स फौरियर था।
फौरियर आधुनिक औद्योगिकवाद का विरोध करता था। उसका मानना था कि श्रमिकों को छोटे
नगर या कस्बों में काम करना चाहिए। उसने किसानों के हित में 'प्लांग्स' बनाये जाने की योजना रखी।
लेकिन उसकी यह योजना सफल नहीं हो सकी थी।
एक अन्य फ्रांसीसी चिंतक 'लूई ब्लां' था। वह एकमात्र यूटोपियन
था, जिसने राजनीति में भी भाग लिया। उसने जो सुधार
कार्यक्रम प्रस्तुत किया वह अधिक व्यावहारिक था। उसका मानना था कि आर्थिक सुधार तो
हो लेकिन उसके पहले राजनीतिक सुधार होना आवश्यक है।
एक महत्त्वूपर्ण यूटोपियन चिंतक, जो गैर-फ्रांसीसी था, 'राबर्ट ओवन' था। उसने इंग्लैंड के
स्कॉटलैण्ड में एक कारखाना लगा रखा था। उसने श्रमिकों को अच्छी वैतनिक सुविधराएँ
दीं। अन्त में उसने पाया कि वेतन बढ़ाने से खर्च तो बढ़ा, लेकिन मुनाफा में भी काफी
वृद्धि हो गई। उसने विचार बनाया कि संतुष्ट श्रमिक ही वास्तविक श्रमिक है।
उपर्युक्त सभी विचारकों ने वर्ग संघर्ष के बदले वर्ग
समन्वय पर बल दिया। फिर भी अन्य चिंतकों का भी अपना योगदान है। ये ऐसे चिंतक थे, जिन्होंने पूँजी और श्रम के बीच सम्बंधों की समस्या
का निराकरण का प्रयास किया। मार्क्स ने इनकी विफलताओं से सबक लिया था।
🖊 सुमेलित करें :
समूह 'अ' |
समूह 'व' |
(1) दास कैपिटल |
(क) 1953 |
(ii) चेका |
(ख) कार्ल मार्क्स |
(iii) नई आर्थिक नीति |
(ग) 1883 |
(iv) कार्ल मार्क्स की मृत्यु |
(घ) गुप्त पुलिस संगठन |
(v) स्टालिन की मृत्यु |
(ङ) लेनिन |
उत्तर
:- (i) → (ख), (ii)→(घ), (iii)→(ङ), (iv)→(ग), (v) → (क)
ㅁㅁㅁ
The End
