Page 391 - कक्षा 9 वीं रसायन विज्ञान नोट्स अध्याय परमाणु एवं अणु
• परमाणु ( Atom ) क्या है ?
उत्तर :- किसी तत्व के सबसे छोटे टुकडे को परमाणु कहते है । जो मुक्त अवस्था में नहीं रहता है तथा किसी रसायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है ।
जैसे :- O , आक्सिजन का एक परमाणु ।
Mg , मैगनेशियम का एक परमाणु ।
नोट :-
1. किसी तत्व का संकेत उसके एक परमाणु से निरूपित किया जाता है ।
2. परमाणु किसी भी तत्व का वह सूक्ष्मतम भाग है जो किसी रासायनिक अभिक्रिया में बिना
अपने रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्मों को बदले,
उस अभिक्रिया में
प्रयुक्त होता है।
3. परमाणु तत्व के सूक्ष्मतम
भाग है जिन्हें किसी भी शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी से भी देखा नहीं जा सकता।
4. परमाणु द्रव्यमान:-
किसी भी तत्व के एक परमाणु का द्रव्यमान, उसका ‘परमाणु द्रव्यमान’ कहलाता है।
परमाणु की विशेषताएँ:-
1. परमाणु अविभाज्य होते हैं, यानी इन्हें और छोटे कणों में विभाजित नहीं किया जा सकता।
2. सभी पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बने होते हैं।
3. एक तत्व के परमाणु एक जैसे होते हैं, लेकिन अलग-अलग तत्वों के परमाणु अलग होते हैं।
•केन्द्रक / नाभिक(Nucleus):- किसी भी तत्व का परमाणु गोलाकार होता है जिसके केंद्र पर लगभग उसका कुल द्रव्यमान वर्तमान होता है , उस केंद्र को उस परमाणु का नाभिक कहते हैं ।
परमाणु के मौलिक गुण
किसी परमाणु के तीन मौलिक गुण होते हैं ।
(i) प्रोटॉन (Proton)
(ii) इलेक्ट्रान (Electron)
(iii) न्यूट्रान (Neutron)
(i) प्रोटॉन (Proton):- प्रोटॉन परमाणु के नाभिक में रहता है । जिसमें विद्धुत का धनावेश होता है । इसका द्रव्यमान हाइड्रोजन के 1 परमाणु के द्रव्यमान के बराबर होता है ।
(ii) इलेक्ट्रान (Electron):- इलेक्ट्रान परमाणु के कक्षा में रहता है । जिसमें विद्धुत का त्रिण आवेश होता है । इसका द्रव्यमान हाइड्रोजन के 1 परमाणु के द्रव्यमान के 1/1837वां भाग के बराबर होता है । जिसे शून्य माना जाता है ।
(iii) न्यूट्रान (Neutron):- न्यूट्रान परमाणु के नाभिक में रहता है । जिसमें विद्धुत का कोई आवेश नहीं होता है । इसका द्रव्यमान हाइड्रोजन के 1 परमाणु के द्रव्यमान के बराबर होता है ।
नोट:- न्यूट्रान का द्रव्यमान प्रोटॉन का द्रव्यमान से थोड़ा अधिक होता है ।
अणु (Molecule) क्या है?
जब दो या दो से अधिक
परमाणु रासायनिक बंध के माध्यम से आपस में जुड़ते हैं, तो वे एक अणु का निर्माण करते हैं। अणु वह सबसे छोटा कण होता
है जो स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रह सकता है और रासायनिक गुणधर्मों को दर्शाता है।
अणु का निर्माण होने पर एक नया पदार्थ बन सकता है, जो मूल परमाणुओं से
भिन्न होता है।
या
किसी योगिक के सबसे छोटे टुकड़े को अणु कहते है । अणु मुक्त अवस्था में रहता है और जिसमें उस योगिक का सब गुण वर्तमान रहता है । यदि अणु को पुनः तोड़ा जाए तो वह अपने प्रथम गुण से भिन्न होता है ।
जैसे :- H2O(पनि का एक अणु)
NaCl(साधारण नमक के एक अणु)
नोट: किसी योगिक का सूत्र उसके एक अणु को निरूपित करता है ।
अणुओं के प्रकार:
1. मोनोएटोमिक अणु (Monoatomic Molecule):- जिन अणुओं में केवल एक ही प्रकार का परमाणु होता है, उन्हे मोनोएटोमिक अणु कहते हैं।
जैसे: नियोन (Ne), आर्गन (Ar) आदि।
2. डायएटोमिक अणु (Diatomic Molecule):- जिन अणुओं में दो परमाणु होते हैं, उन्हे डायएटोमिक अणु कहते हैं।
जैसे: हाइड्रोजन
(H2), ऑक्सीजन (O2) आदि।
3. पॉलीएटोमिक अणु (Polyatomic Molecule):- जिन अणुओं में दो से अधिक परमाणु होते हैं, उन्हे
पॉलीएटोमिक अणु कहते हैं
जैसे: पानी (H2O), कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) आदि।
अणु की विशेषताएँ
1.अणु स्थिर होते हैं और स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रह सकते
हैं।
3. अणु रासायनिक गुणों को दर्शाते हैं।
2.किसी पदार्थ की भौतिक और रासायनिक गुणधर्म अणुओं के आधार पर निर्धारित होते हैं।
अणु की संरचना का महत्व
अणुओं की संरचना किसी पदार्थ की भौतिक और रासायनिक गुणधर्मों
को प्रभावित करती है। अणुओं के द्वारा किए गए विभिन्न संयोजन से अलग-अलग यौगिक बनते
हैं, जो मानव जीवन और प्राकृतिक
प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
परमाणु और अणु के बीच अंतर
परमाणु |
अणु |
1. यह तत्व का सबसे छोटा कण है। |
1. यह परमाणुओं का समूह होता है। |
2. स्वतंत्र रूप से रासायनिक क्रिया में भाग ले सकता है। |
2. स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रह सकता है। |
रासायनिक संयोजन के
नियम:-
किन्हीं दो उया
उससे अधिक पदार्थों के बीच रासायनिक अभिक्रिया कुछ सिद्धांतों पर आधारित होती है। इन सिद्धांतों को रासायनिक संयोजन के नियम कहते
हैं।
रासायनिक संयोजन के
निम्नलिखित दो नियम होते हैं:
1. द्रव्यमान संरक्षण का नियम: इस नियम के अनुसार किसी रासायनिक अभिक्रिया में
द्रव्यमान का न तो सृजन किया जा सकता है न ही विनाश।
2. स्थिर अनुपात का नियम: कोई भी यौगिक दो या दो से अधिक तत्वों से
निर्मित होता है। इस प्रकार प्राप्त यौगिकों में, इन तत्वों का अनुपात स्थिर होता है चाहे इसे किसी स्थान से प्राप्त किया गया
हो अथवा किसी ने भी इसे बनाया हो।
डॉल्टन का परमाणु
सिद्धांत (Dalton’s Atomic Theory):- जॉन डॉल्टन ने 1808 में पदार्थों की रचना संबंधी अपने विचारों को सिद्धांत
के रूप में प्रस्तुत किया , जिसको डॉल्टन परमाणु सिद्धांत कहते हैं ।
डॉल्टन
का परमाणु सिद्धांत निनलिखित हैं:
1. सभी पदार्थ छोटे-छोटे अविभाज्य कणों से बने
होते हैं, जिन्हें परमाणु कहते हैं।
2. किसी तत्व के
सभी परमाणु समान होते हैं, लेकिन अलग-अलग तत्वों के परमाणु अलग-अलग होते
हैं।
3. परमाणु अविभाज्य होते हैं और न तो उन्हें बनाया
जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है।
4. रासायनिक
अभिक्रियाओं में परमाणु पुनः संयोजित होते हैं।
डाल्टन
के परमाणु सिद्धांत के दोष:
1. इसके द्वारा अणु और परमाणु में
कोई भेद मालूम नहीं होता है।
2. इसके द्वारा परमाणु अविभाज्य सूक्ष्मतम कण होते हैं जो आज असत्य है।
3. इसके द्वारा दिए गए तत्व के सभी परमाणुओं का द्रव्यमान एवं
रासायनिक गुणधर्म समान होते हैं परंतु समस्थानिकों के ज्ञान ने इसको गलत सिद्ध कर
दिया है।
4. इसके द्वारा गेलजाक के गैसीय
आयतन के नियम की व्याख्या नहीं की जा सकती है।
डाल्टन
के परमाणु सिद्धांत की विशेषताएं :
1. इसी सिद्धांत के आधार पर अन्य वैज्ञानिकों
ने अनेक महत्वपूर्ण आविष्कार किए।
2. इसी सिद्धांत के आधार पर आज परमाणु शक्ति इतनी विकसित है।
3. इसी सिद्धांत के आधार पर रसायन शास्त्र का तेजी से विकास हुआ है।
4. इसी सिद्धांत के आधार पर रसायन संयोग के प्रथम चार नियमों की व्याख्या की जा सकती
है।
आयन:-
आयन, एक परमाणु या परमाणुओं का समूह होता है जिस पर कुछ आवेश (धनात्मक या ऋणात्मक)
अवश्य उपस्थित रहता है|
धनावेशित आयन:- Na+, K+, Ca2+, Al3+
ऋनावेशित आयन:- Cl- , S2- , OH-, SO42-
रासायनिक सूत्र:-
किसी यौगिक का
रासायनिक सूत्र उसके संघटक का प्रतीकात्मक निरूपण होता है। इसके लिए हमें तत्वों के प्रतीकों एवं उनकी
संयोजन क्षमताएँ ज्ञात होनी चाहिए।
अर्थात,
जिस प्रकार तत्वों के परमाणुओं को संकेतों के रूप में व्यक्त किया जाता है, उसी प्रकार
योगिक के अणुओं को संकेतों के समूह के द्वारा निरूपित किया जाता है , उसको रसायनिक
सूत्र कहते हैं।
संयोजन क्षमता(valency):-
किसी एक तत्व को किसी दूसरे तत्व के साथ मिलने की क्षमता को संयोजन क्षमता कहलाती है।
अर्थात,
किसी तत्व की संयोजकता एक संख्या है जो यह बताती है की उस तत्व का एक परमाणु समतुल्य
कितने परमाणुओं से संयोग करके योगिक बनाती है।
या
अपने निकटस्थ अक्रिय गैस जैसी इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था
प्राप्त करने के लिए किसी तत्व के परमाणु द्वारा त्यक्त या ग्रहीत इलेक्ट्रानों की
कुल संख्या को उस तत्व की संयोजकता कहते है।
रासायनिक सूत्र लिखने के नियम:-
1. सबसे पहले तत्वों के परमाणुओं के संकेतों को लिखा जाता है ।
2. अब इन संकेतों के नीचे इनकी संयोजकताओं को लिखा जाता है।
3. अब संयोजित परमाणुओं की संयोजकताओं को क्राहैं गुना करते हैं ।
4. परिणामस्वरूप, पहला परमाणु दूसरे परमाणु की संयोजकता ग्रहण करता है तथा दूसरा परमाणु पहले
वाले परमाणु की संयोजकता को ग्रहण करता है।
5. संयोजकताओं को क्रास गुना करके रासायनिक सूत्र तैयार हो जाता है।
उदाहरण:-
रासायनिक सूत्र की
विशेषताएँ:
1. रासायनिक सूत्र से यह ज्ञात होता है कि यौगिक
में कितने और कौन से तत्व होते हैं।
2. यह रासायनिक अभिक्रियाओं को सरल रूप में
दर्शाने में मदद करता है।
3. यह योगिक में प्रत्येक तत्व के परमाणु संख्या बताता
है।
परमाणु
संख्या(Atomic
number):-
किसी तत्व के परमाणु
के नाभिक में उपस्थित प्रोटानों की कुल संख्या को उस
तत्व का परमाणु संख्या कहते हैं ।
इसको “ z ” से निरूपित किया जाता है
।
अतः z = p
नोट: मोसले के अनुसार किसी तत्व के परमाणु
में उपस्थित प्रोटानों की कुल संख्या उसमें उपस्थित इलेक्ट्रानों
की कुल संख्या के बराबर होता है ।
अतः, z = p = e
परमाणु द्रव्यमान(Atomic
Mass):-
किस तत्व के परमाणु में उपस्थित प्रोटानों , न्यूट्रनों तथा इलेक्ट्रानों के
द्रव्यमानों के योगफल को परमाणु द्रव्यमान कहते हैं।
इलेक्ट्रानों के द्रव्यमान को शून्य माना जाता है।
अतः परमाणु द्रव्यमान = p + n
आण्विक द्रव्यमान
तथा मोल संकल्पना:-
आण्विक
द्रव्यमान:- किसी पदार्थ का आण्विक द्रव्यमान उसके सभी
संघटक परमाणुओं के द्रव्यमानों का योग होता है। इस प्रकार यह अणु का वह सापेक्ष द्रव्यमान है जिसे परमाणु द्रव्यमान इकाई (u) द्वारा व्यक्त किया जाता है।
मोल-संकल्पना:- किसी स्पीशीज (परमाणु, अणु, आयन अथवा कण) के एक मोल में मात्राओं की वह
संख्या है जो ग्राम में उसके परमाणु अथवा आण्विक द्रव्यमान के बराबर होती है| किसी पदार्थ के एक मोल में कणों की संख्या निश्चित होती है जिसका मान 6.022 ×10^23 होता है|
मोलर द्रव्यमान:- मोलर द्रव्यमान किसी भी पदार्थ के एक मोल कणों
के द्रव्यमानों का जोड़ होता है|
आधुनिक परमाणु
सिद्धांत:- डॉल्टन के परमाणु सिद्धांत के बाद, वैज्ञानिकों ने कुछ नई खोजें कीं, जिससे आधुनिक
परमाणु सिद्धांत का विकास हुआ, जिसमें निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया गया:
1. परमाणु विभाज्य
होते हैं, क्योंकि इनमें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन होते हैं।
2. परमाणु का
द्रव्यमान नाभिक में होता है, जबकि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाते
हैं।
3. विभिन्न तत्वों
के परमाणु अपनी-अपनी विशिष्ट संख्या में प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन रखते हैं, जो उनके रासायनिक गुणों को निर्धारित करते हैं।
रासायनिक बंध (Chemical Bonding):-
अणु के निर्माण के
लिए परमाणुओं का एक साथ आना आवश्यक होता है। परमाणुओं के बीच के रासायनिक बंधों का
निर्माण तब होता है जब वे अपने बाहरी इलेक्ट्रॉनों को साझा करते हैं या
स्थानांतरित करते हैं। बंध बनने के तीन मुख्य प्रकार होते हैं:
आयनिक बंध (Ionic Bond)::-
जब एक परमाणु अपने
इलेक्ट्रॉन को दूसरे परमाणु को स्थानांतरित करता है, तो आयनिक बंध बनता
है। जैसे कि NaCl (सोडियम क्लोराइड) में होता है।
सहसंयोजक बंध (Covalent Bond):-
जब दो परमाणु अपने
इलेक्ट्रॉनों को आपस में साझा करते हैं, तो सहसंयोजक बंध
बनता है। जैसे कि H2O (पानी) में होता है।
धात्विक बंध (Metallic Bond):
धातु परमाणुओं के
बीच इलेक्ट्रॉनों का स्वतंत्र रूप से आदान-प्रदान होने से धात्विक बंध बनता है।
जैसे कि लोहे में होता है।
अणु भार और
परमाणु भार (Molecular Mass and Atomic
Mass):-
परमाणु भार (Atomic Mass): परमाणु का द्रव्यमान बहुत छोटा होता है, और इसे द्रव्यमान
संख्या के आधार पर मापा जाता है। द्रव्यमान संख्या परमाणु में उपस्थित प्रोटॉनों
और न्यूट्रॉनों की कुल संख्या होती है। उदाहरण के लिए, कार्बन का परमाणु भार 12 होता है, जिसका अर्थ है कि
उसमें 6 प्रोटॉन और 6 न्यूट्रॉन होते हैं।
अणु भार (Molecular Mass): अणु के द्रव्यमान को परमाणुओं के संयुक्त
द्रव्यमान के रूप में मापा जाता है। इसे अणु के सभी परमाणुओं के परमाणु भारों के
योग के रूप में निकाला जाता है। उदाहरण के लिए, पानी (H2O) का अणु भार 18 होता है (हाइड्रोजन का 1×2 + ऑक्सीजन का 16×1)।
2. अवोगाद्रो
संख्या (Avogadro’s Number):- अवोगाद्रो संख्या किसी भी पदार्थ के 1 मोल में
उपस्थित परमाणुओं या अणुओं की संख्या होती है। इसे 6.022 × 10²³ के रूप में ज्ञात किया गया है। यह संख्या
परमाणुओं और अणुओं की गणना करने में मदद करती है। इसका उपयोग मोलर द्रव्यमान की
गणना में भी किया जाता है।
उदाहरण: यदि किसी पदार्थ का 1 मोल होता है, तो उसमें 6.022 × 10²³ अणु होते हैं।
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